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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 39
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    अ॒मुत्र॒ सन्नि॒ह वे॑त्थे॒तः संस्तानि॑ पश्यसि। इ॒तः प॑श्यन्ति रोच॒नं दि॒वि सूर्यं॑ विप॒श्चित॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒मुत्र॑ । सन् । इ॒ह । वे॒त्थ॒ । इ॒त: । सन् । तानि॑ । प॒श्य॒सि॒ । इ॒त: । प॒श्य॒न्ति॒ । रो॒च॒नम् । दि॒वि । सूर्य॑म् । वि॒प॒:ऽचित॑म् ॥१.३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अमुत्र सन्निह वेत्थेतः संस्तानि पश्यसि। इतः पश्यन्ति रोचनं दिवि सूर्यं विपश्चितम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अमुत्र । सन् । इह । वेत्थ । इत: । सन् । तानि । पश्यसि । इत: । पश्यन्ति । रोचनम् । दिवि । सूर्यम् । विप:ऽचितम् ॥१.३९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 39

    पदार्थ -
    [हे परमेश्वर !] (अमुत्र) वहाँ पर (सन्) रहता हुआ तू (इह) यहाँ (वेत्थ) जानता है, (इतः) इधर (सन्) रहता हुआ (तानि) उन [वस्तुओं] को (पश्यसि) देखता है। (इतः) यहाँ से (दिवि) प्रत्येक व्यवहार में (रोचनम्) चमकनेवाले (विपश्चितम्) बुद्धिमान् (सूर्यम्) सबके चलानेवाले [परमेश्वर] को (पश्यन्ति) वे [विद्वान्] देखते हैं ॥३९॥

    भावार्थ - परमेश्वर समीप और दूर से सर्वव्यापी होकर सर्वनियन्ता है, ऐसा विचार कर बुद्धिमान् लोग अपने व्यवहारों में उन्नति करते हैं ॥३९॥

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