Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 24
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    सूर्य॒स्याश्वा॒ हर॑यः केतु॒मन्तः॒ सदा॑ वहन्त्य॒मृताः॑ सु॒खं रथ॑म्। घृ॑त॒पावा॒ रोहि॑तो॒ भ्राज॑मानो॒ दिवं॑ दे॒वः पृष॑ती॒मा वि॑वेश ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूर्य॑स्य । अश्वा॑: । हर॑य: । के॒तु॒ऽमन्त॑: । सदा॑ । व॒ह॒न्ति॒ । अ॒मृता॑: । सु॒ऽखम् । रथ॑म् । घृ॒त॒ऽपावा॑ । रोहि॑त: । भ्राज॑माना: । दिव॑म् । दे॒व: । पृष॑तीम् । आ । वि॒वे॒श॒ ॥१.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर्यस्याश्वा हरयः केतुमन्तः सदा वहन्त्यमृताः सुखं रथम्। घृतपावा रोहितो भ्राजमानो दिवं देवः पृषतीमा विवेश ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूर्यस्य । अश्वा: । हरय: । केतुऽमन्त: । सदा । वहन्ति । अमृता: । सुऽखम् । रथम् । घृतऽपावा । रोहित: । भ्राजमाना: । दिवम् । देव: । पृषतीम् । आ । विवेश ॥१.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 24

    पदार्थ -
    (सूर्यस्य) सबके चलानेवाले [परमेश्वर] के (अश्वाः) व्यापक (केतुमन्तः) विज्ञानमय (अमृताः) अमर [अविनाशी वा पुरुषार्थी] (हरयः) स्वीकारयोग्य गुण (रथम्) रमणयोग्य संसार को (सुखम्) सुख से (सदा) सदा (वहन्ति) ले चलते हैं। (घृतपावा) सेचन सामर्थ्य [वृद्धि] की रक्षा करनेवाले (भ्राजमानः) प्रकाशमान (देवः) ज्ञानवान् (रोहितः) सबको उत्पन्न करनेवाले [परमेश्वर] ने (दिवम्) व्यवहारकुशल (पृषतीम्) सींचनेवाली [प्रकृति] में (आ विवेश) प्रवेश किया है ॥२४॥

    भावार्थ - जिस परमात्मा के नियमों से यह संसार चल रहा है, वही परमात्मा प्रकृति में प्रवेश करके उसे चेष्टा देता है ॥२४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top