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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 15
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - अतिजागतगर्भा जगती सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    आ त्वा॑ रुरोह बृह॒त्यु॒त प॒ङ्क्तिरा क॒कुब्वर्च॑सा जातवेदः। आ त्वा॑ रुरोहोष्णिहाक्ष॒रो व॑षट्का॒र आ त्वा॑ रुरोह॒ रोहि॑तो॒ रेत॑सा स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । त्वा॒ । रु॒रो॒ह॒ । बृ॒ह॒ती । उ॒त । प॒ङ्क्ति: । आ । क॒कुप् । वर्च॑सा । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । आ । त्वा॒ । रु॒रो॒ह॒ । उ॒ष्णि॒हा॒ऽअ॒क्ष॒र: । व॒ष॒ट्ऽका॒र: । आ । त्वा॒ । रु॒रो॒ह॒ । रोहि॑त: । रेत॑सा । स॒ह ॥१.१५।


    स्वर रहित मन्त्र

    आ त्वा रुरोह बृहत्युत पङ्क्तिरा ककुब्वर्चसा जातवेदः। आ त्वा रुरोहोष्णिहाक्षरो वषट्कार आ त्वा रुरोह रोहितो रेतसा सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । त्वा । रुरोह । बृहती । उत । पङ्क्ति: । आ । ककुप् । वर्चसा । जातऽवेद: । आ । त्वा । रुरोह । उष्णिहाऽअक्षर: । वषट्ऽकार: । आ । त्वा । रुरोह । रोहित: । रेतसा । सह ॥१.१५।

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 15

    पदार्थ -
    (जातवेदः) हे प्रसिद्ध ज्ञानवाले पुरुष ! (त्वा) तुझको (बृहती) विशाल विद्या ने (उत) और (पङ्क्तिः) कीर्त्ति ने (आ) सब ओर से और (ककुप्) सुख फैलानेवाली शोभा ने (वर्चसा) प्रताप के साथ (आ) सब ओर से (रुरोह) ऊँचा किया है। (त्वा) तुझको (उष्णिहाक्षरः) बड़ी प्रीति से फैलनेवाले, (वषट्कारः) दान व्यवहार ने (आ) सब ओर से (रुरोह) ऊँचा किया है। और (त्वा) तुझको (रोहितः) सबके उत्पन्न करनेवाले [परमेश्वर] ने (रेतसा सह) पराक्रम के साथ (आ) सब प्रकार से (रुरोह) ऊँचा किया है ॥१५॥

    भावार्थ - जो मनुष्य विद्या आदि शुभ गुणों को धारण करते हैं, परमेश्वर उनको संसार में पराक्रमी करता है ॥१५॥

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