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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 11
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    ऊ॒र्ध्वो रोहि॑तो॒ अधि॒ नाके॑ अस्था॒द्विश्वा॑ रू॒पाणि॑ ज॒नय॒न्युवा॑ क॒विः। ति॒ग्मेना॒ग्निर्ज्योति॑षा॒ वि भा॑ति तृ॒तीये॑ चक्रे॒ रज॑सि प्रि॒याणि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊ॒र्ध्व: । रोहि॑त: । अधि॑ । नाके॑ । अ॒स्था॒त् । विश्वा॑ । रू॒पाणि॑ । ज॒नय॑न् । युवा॑ । क॒वि: । ति॒ग्मेन॑ ।‍ अ॒ग्नि: । ज्योति॑षा । वि । भा॒ति॒ । तृ॒तीये॑ । च॒क्रे॒ । रज॑सि । प्रि॒याणि॑ ॥१.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्ध्वो रोहितो अधि नाके अस्थाद्विश्वा रूपाणि जनयन्युवा कविः। तिग्मेनाग्निर्ज्योतिषा वि भाति तृतीये चक्रे रजसि प्रियाणि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्ध्व: । रोहित: । अधि । नाके । अस्थात् । विश्वा । रूपाणि । जनयन् । युवा । कवि: । तिग्मेन ।‍ अग्नि: । ज्योतिषा । वि । भाति । तृतीये । चक्रे । रजसि । प्रियाणि ॥१.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (युवा) बली, (कविः) ज्ञानी (रोहितः) सबका उत्पन्न करनेवाला [परमेश्वर] (विश्वा) सब (रूपाणि) रूपों [सृष्टि के पदार्थों] को (जनयन्) उत्पन्न करता हुआ (नाके) मोक्षसुख में (अधि) अधिकारपूर्वक (ऊर्ध्वः) ऊँचा होकर (अस्थात्) ठहरा है। (अग्निः) प्रकाशस्वरूप [परमेश्वर] (तिग्मेन) तीक्ष्ण (ज्योतिषा) ज्योति के साथ (वि) विविध प्रकार (भाति) चमकता है, उसने (तृतीये) तीसरे [रजोगुण और तमोगुण से भिन्न, सत्त्व] (रजसि) लोक में [वर्त्तमान होकर] (प्रियाणि) प्रिय वस्तुओं को (चक्रे) बनाया है ॥११॥

    भावार्थ - जिस सर्वशक्तिमान् सर्वज्ञ परमेश्वर ने सब संसार को रचा है, विद्वान् लोग उसकी महिमा को प्रत्येक पदार्थ में देखकर अपनी उन्नति करते हैं ॥११॥

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