Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 110
    ऋषिः - पावकाग्निर्ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    6

    इ॒ष्क॒र्त्तार॑मध्व॒रस्य॒ प्रचे॑तसं॒ क्षय॑न्त॒ꣳ राध॑सो म॒हः। रा॒तिं वा॒मस्य॑ सु॒भगां॑ म॒हीमिषं॒ दधा॑सि सान॒सिꣳ र॒यिम्॥११०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ष्क॒र्त्तार॑म्। अ॒ध्व॒रस्य॑। प्रचे॑तस॒मिति॒ प्रऽचे॑तसम्। क्षय॑न्तम्। राध॑सः। म॒हः। रा॒तिम्। वा॒मस्य॑। सु॒भगा॒मिति॑ सु॒ऽभगा॑म्। म॒हीम्। इष॑म्। दधा॑सि। सा॒न॒सिम्। र॒यिम् ॥११० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इष्कर्तारमध्वरस्य प्रचेतसङ्क्षयन्तँ राधसो महः । रातिँ वामस्य सुभगाम्महीमिषन्दधासि सानसिँ रयिम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इष्कर्त्तारम्। अध्वरस्य। प्रचेतसमिति प्रऽचेतसम्। क्षयन्तम्। राधसः। महः। रातिम्। वामस्य। सुभगामिति सुऽभगाम्। महीम्। इषम्। दधासि। सानसिम्। रयिम्॥११०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 110
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে বিদ্বান্ পুরুষ ! আপনি (অধ্বরস্য) বৃদ্ধিযোগ্য যজ্ঞের (ইষ্কর্ত্তারম্) সিদ্ধকারী (প্রচেতসম্) উত্তম বুদ্ধিমান (বামস্য) প্রশংসিত (মহঃ) মহা (রাধসঃ) ধনের (রাতিম্) প্রদান কারী এবং (ক্ষয়ন্তম্) নিবাসকারী পুরুষ এবং (সুভগায়) সুন্দর ঐশ্বর্য্য প্রদানকারী (মহীম্) পৃথিবী তথা (ইষম্) অন্নাদিকে এবং (সানসিম্) প্রাচীন (রয়িম্) ধনকে (দধাসি) ধারণ করেন এই জন্য আমাদিগকে সৎকার করিবার যোগ্য হউন ॥ ১১০ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- যে মনুষ্য যেমন নিজের জন্য সুখের ইচ্ছা করিবে সেইরূপ অন্যের জন্যও করিবে তাহারাই আপ্ত সৎকারের যোগ্য হইবে ॥ ১১০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ই॒ষ্ক॒র্ত্তার॑মধ্ব॒রস্য॒ প্রচে॑তসং॒ ক্ষয়॑ন্ত॒ꣳ রাধ॑সো ম॒হঃ ।
    রা॒তিং বা॒মস্য॑ সু॒ভগাং॑ ম॒হীমিষং॒ দধা॑সি সান॒সিꣳ র॒য়িম্ ॥ ১১০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ইষ্কর্ত্তারমিত্যস্য পাবকাগ্নির্ঋষিঃ । বিদ্বান্ দেবতা । আর্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top