Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 94
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - भिषजो देवताः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    8

    याश्चे॒दमु॑पशृ॒ण्वन्ति॒ याश्च॑ दू॒रं परा॑गताः। सर्वाः॑ सं॒गत्य॑ वीरुधो॒ऽस्यै संद॑त्त वी॒र्य्यम्॥९४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याः। च॒। इ॒दम्। उ॒प॒शृ॒ण्वन्तीत्यु॑पऽशृ॒ण्वन्ति॑। याः। च॒। दू॒रम्। परा॑गता॒ इति॒ परा॑ऽगताः। सर्वाः॑। सं॒गत्येति॑ सम्ऽगत्य॑। वी॒रु॒धः॒। अ॒स्यै। सम्। द॒त्त॒। वी॒र्य्य᳖म् ॥९४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    याश्चेदमुपशृण्वन्ति याश्च दूरम्परागताः । सर्वाः सङ्गत्य वीरुधो स्यै सन्दत्त वीर्यम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    याः। च। इदम्। उपशृण्वन्तीत्युपऽशृण्वन्ति। याः। च। दूरम्। परागता इति पराऽगताः। सर्वाः। संगत्येति सम्ऽगत्य। वीरुधः। अस्यै। सम्। दत्त। वीर्य्यम्॥९४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 94
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে বিদ্বান্গণ! আপনারা (য়াঃ) যাহা (চ) বিদিত হইয়াছেন এবং যাহা (উপশৃণৃন্তি) শুনিয়াছেন (য়াঃ) যাহা (চ) সমীপ এবং যাহা (দূরম্) দূর দেশে (পরাগতাঃ) প্রাপ্ত হইতে পারে সেই (সর্বাঃ) সব (বীরুধঃ) বৃক্ষাদি ওষধীগুলিকে (সংগত্য) নিকট প্রাপ্ত করিয়া (ইদম্) এই (বীর্য়্যম্) শরীরের পরাক্রমকে বৈদ্য মনু্ষ্যগণ যেমন সিদ্ধ করেন সেইরূপ সেই ওষধি-বিজ্ঞান (অস্যৈ) এই কন্যাকে (সংদত্ত) সম্যক্ প্রকারে প্রদান করুন ॥ ঌ৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমরা, যে ওষধীগুলি দূর বা সমীপে রোগ হরণ করিতে এবং বল প্রদান করিতে শ্রুত হয়, উহাদিগকে উপকারে আনিয়া রোগ রহিত হও ॥ ঌ৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়াশ্চে॒দমু॑পশৃ॒ণ্বন্তি॒ য়াশ্চ॑ দূ॒রং পরা॑গতাঃ ।
    সর্বাঃ॑ সং॒গত্য॑ বীরুধো॒ऽস্যৈ সংদ॑ত্ত বী॒র্য়্য᳖ম্ ॥ ঌ৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য়াশ্চেদমিত্যস্য বরুণ ঋষিঃ । ভিষজো দেবতাঃ । বিরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top