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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 87
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - वैद्यो देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    सा॒कं य॑क्ष्म॒ प्रप॑त॒ चाषे॑ण किकिदी॒विना॑। सा॒कं वात॑स्य॒ ध्राज्या॑ सा॒कं न॑श्य नि॒हाक॑या॥८७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सा॒कम्। य॒क्ष्म॒। प्र। प॒त॒। चाषे॑ण। कि॒कि॒दी॒विना॑। सा॒कम्। वात॑स्य। ध्राज्या॑। सा॒कम्। न॒श्य॒। नि॒हाक॒येति॑ नि॒ऽहाक॑या ॥८७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    साकँयक्ष्म प्रपत चाषेण किकिदीविना । साकँवातस्य ध्राज्या साकन्नश्य निहाकया ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    साकम्। यक्ष्म। प्र। पत। चाषेण। किकिदीविना। साकम्। वातस्य। ध्राज्या। साकम्। नश्य। निहाकयेति निऽहाकया॥८७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 87
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে বৈদ্য বিদ্বান্ পুরুষ ! (কিবিদীবিনা) জ্ঞানবৃদ্ধিকারী (চাষেণ) আহার দ্বারা (সাকং) ওষধিযুক্ত পদার্থ সহ (য়ক্ষ্ম) রাজরোগ (প্রপত) সারিয়া যায় যেমন সেই (বাজস্য) বায়ুর (ধ্রাজ্য) গতির (সাকম্) সঙ্গে (নশ্য) নষ্ট হয় এবং (নিহাকয়া) নিরন্তর ত্যাগ করিবার পীড়া (সাকম্) সহ দূর হয় সেইরূপ প্রচেষ্টা করে ॥ ৮৭ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত যে, ওষধীর সেবন, যোগাভ্যাস এবং ব্যায়াম সেবন দ্বারা রোগগুলিকে নষ্ট করিয়া সুখপূর্বক নিবাস কর ॥ ৮৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - সা॒কং য়॑ক্ষ্ম॒ প্র প॑ত॒ চাষে॑ণ কিকিদী॒বিনা॑ ।
    সা॒কং বাত॑স্য॒ ধ্রাজ্যা॑ সা॒কং ন॑শ্য নি॒হাক॑য়া ॥ ৮৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - সাকমিত্যস্য ভিষগৃষিঃ । বৈদ্যো দেবতা । বিরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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