Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 2/ मन्त्र 53
    सूक्त - भृगुः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मारोगनाशन सूक्त

    अविः॑ कृ॒ष्णा भा॑ग॒धेयं॑ पशू॒नां सीसं॑ क्र॒व्यादपि॑ च॒न्द्रं त॑ आहुः। माषाः॑ पि॒ष्टा भा॑ग॒धेयं॑ ते ह॒व्यम॑रण्या॒न्या गह्व॑रं सचस्व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अवि॑: । कृ॒ष्णा । भा॒ग॒ऽधेय॑म् । प॒शू॒नाम् । सीस॑म् । क्र॒व्य॒ऽअत् । अपि॑ । च॒न्द्रम् । ते॒ । आ॒हु॒: । माषा॑: । पि॒ष्टा: । भा॒ग॒ऽधेय॑म‌् । ते॒ । ह॒व्यम् । अ॒र॒ण्या॒न्या: । गह्व॑रम् । स॒च॒स्व॒ ॥२.५३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अविः कृष्णा भागधेयं पशूनां सीसं क्रव्यादपि चन्द्रं त आहुः। माषाः पिष्टा भागधेयं ते हव्यमरण्यान्या गह्वरं सचस्व ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अवि: । कृष्णा । भागऽधेयम् । पशूनाम् । सीसम् । क्रव्यऽअत् । अपि । चन्द्रम् । ते । आहु: । माषा: । पिष्टा: । भागऽधेयम‌् । ते । हव्यम् । अरण्यान्या: । गह्वरम् । सचस्व ॥२.५३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 2; मन्त्र » 53

    पदार्थ -

    १. (अविः) = [अव रक्षणम्] मातृरूपेण सबका रक्षण करनेवाली, (कृष्णा) = सबको अपनी ओर आकृष्ट करनेवाली प्रकृति (पशूनां भागधेयम्) = सब प्राणियों का भाग है। सामान्यत: मनुष्य को प्रकृति से प्रदत्त इन वानस्पतिक पदार्थों का सेवन करना ही ठीक है। हे (क्रव्यात्) = मांसभक्षण करनेवाले पुरुष! (ते चन्द्रं अपि) = तेरी इस चाँदी को भी-धन को भी-(सीसं आहु:) = तेरे लिए सीसे की गोली कहते हैं। तेरा यह धन तेरे ही विनाश का कारण बन जाता है। २. (पिष्टा: माषा:) = पिसे हुए ये उड़द ही ते भागधेयम् तेरा भाग हैं। इन्हीं का तुने सेवन करना है, मांस का नहीं। अपनी वृत्ति को उत्तम बनाये रखने के लिए तू (हव्यम्) = हव्य को-अग्निहोत्र को तथा (आरण्यान्या: गह्वरम्) = अरण्य की गुफा को-ध्यान के लिए एकान्त प्रदेश को [सावित्रीमप्यधीयीत गत्वारयं समाहितः] (सचस्व) = सेवन करनेवाला बन। यह 'सन्ध्या-हवन' तेरी वृत्ति को उत्तम बनाएगा और तू मांसभक्षणादि दुर्व्यसनों से बचा रहेगा।

    भावार्थ -

    हमें प्रकृतिमाता से दिये गये वानस्पतिक पदार्थों का ही सेवन करना है। मार्षों का ही सेवन करना है, मांस का नहीं। अपनी प्रवृत्ति को ठीक रखने के लिए ही हम 'ध्यान व यज्ञ' का सेवन करनेवाले बनें।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top