अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 2/ मन्त्र 7
यो अ॒ग्निः क्र॒व्यात्प्र॑वि॒वेश॑ नो गृ॒हमि॒मं पश्य॒न्नित॑रं जा॒तवे॑दसम्। तं ह॑रामि पितृय॒ज्ञाय॑ दू॒रं स घ॒र्ममि॑न्धां पर॒मे स॒धस्थे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । अ॒ग्नि: । क्र॒व्य॒ऽअत् । प्र॒ऽवि॒वेश॑ । न॒: । गृ॒हम् । इ॒मम् । पश्य॑न् । इत॑रम् । जा॒तऽवे॑दसम् । तम् । ह॒रा॒मि॒ । पि॒तृ॒ऽय॒ज्ञाय॑ । दू॒रम् । स: । घ॒र्मम् । इ॒न्धा॒म् । प॒र॒मे । स॒धऽस्थे॑ ॥२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
यो अग्निः क्रव्यात्प्रविवेश नो गृहमिमं पश्यन्नितरं जातवेदसम्। तं हरामि पितृयज्ञाय दूरं स घर्ममिन्धां परमे सधस्थे ॥
स्वर रहित पद पाठय: । अग्नि: । क्रव्यऽअत् । प्रऽविवेश । न: । गृहम् । इमम् । पश्यन् । इतरम् । जातऽवेदसम् । तम् । हरामि । पितृऽयज्ञाय । दूरम् । स: । घर्मम् । इन्धाम् । परमे । सधऽस्थे ॥२.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 2; मन्त्र » 7
विषय - मांस भोजन Vs. शाक भोजन
पदार्थ -
१. एक घर में जब तक शाकभोजन चलता है तब तक वह घर हव्याद् अग्निवाला होता हे। हव्य पदार्थों का प्रयोग करते हुए ये लोग अपनी बुद्धियों के विकास के द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं, अत: यह 'हव्याद् अग्नि जातवेदस्' नामवाली होती है। (इमं इतरं जातवेदस्) = इस दूसरी जातवेदस् अग्नि को (पश्यन्) = देखती हुई (यः) = जो (क्रव्यात् अग्निः) = मांस भोजनवाली (अग्नि नः गृहम) = हमारे घरों में (प्रविवेश) = घुस आती है, (तम्) = उसको (दूरं हरामि) = मैं घर से दूर करता हूँ। हम कई बार स्वादवश या मांसभोजन की पौष्टिकता के भ्रमवश मांसभोजन में प्रवृत्त हो जाते हैं, यही 'क्रव्याद् अग्नि' का घर में प्रवेश है। २. इस क्रव्याद् अग्नि के प्रवेश से मानव के स्वभाव में क्रूरता व स्वार्थ का प्राबल्य होता है। तब हम बड़ों के आदर व सेवा को भूल जाते है, अत: इस क्रव्याद् अग्नि को मैं दूर करता हूँ, जिससे (पितृयज्ञाय) = हमारे घरों में पितृयज्ञ ठीक रूप से चलता रहे। (स:) = क्रव्याद् अनि को दूर करनेवाला व पितृयज्ञ को ठीक प्रकार से करनेवाला वह शाकभोजी पुरुष (परमे सधस्थे) = इस उत्कृष्ट, आत्मा व परमात्मा के मिलकर बैठने के स्थान हृदय में (घर्मम्) = उस दीति व मलों का क्षरण करनेवाले प्रभु को (इन्धाम) = दीप्त करे, अर्थात् हृदय में प्रभुदर्शन करनेवाला बने।
भावार्थ -
हमारे घरों में मांसभोजन की प्रवृत्ति न हो। हम शाकभोजी रहते हुए स्वार्थ व क्रूरता से दूर रहें। इसप्रकार हमारे घरों में पितृयज्ञ [बड़ों का आदर] सदा चलता रहे और हदयों में हम प्रभु का दर्शन करनेवाले बनें।
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