ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 2
सोमे॑नादि॒त्या ब॒लिन॒: सोमे॑न पृथि॒वी म॒ही । अथो॒ नक्ष॑त्राणामे॒षामु॒पस्थे॒ सोम॒ आहि॑तः ॥
स्वर सहित पद पाठसोमे॑न । आ॒दि॒त्याः । ब॒लिनः॑ । सोमे॑न । पृ॒थि॒वी । म॒ही । अथो॒ इति॑ । नक्ष॑त्राणाम् । ए॒षाम् । उ॒पऽस्थे॑ । सोमः॑ । आऽहि॑तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमेनादित्या बलिन: सोमेन पृथिवी मही । अथो नक्षत्राणामेषामुपस्थे सोम आहितः ॥
स्वर रहित पद पाठसोमेन । आदित्याः । बलिनः । सोमेन । पृथिवी । मही । अथो इति । नक्षत्राणाम् । एषाम् । उपऽस्थे । सोमः । आऽहितः ॥ १०.८५.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोमेन) परमात्मा के रचे सोमधर्मवाले उत्पादक पदार्थ से (आदित्याः) किरणें (बलिनः) बलवान् होती हैं, सोम आदि ओषधि से पृथिवी जीवननिर्वाह के लिये महत्त्वयुक्त (अथ-उ) और (नक्षत्राणाम्-उपस्थे) रेवती आदि के मध्य में (सोमः-आहितः) चन्द्रमा स्थित हुआ शोभित होता है ॥२॥
भावार्थ
उत्पादक धर्मवाले पदार्थ से किरणें बलवान् होती हैं, सोम आदि ओषधियों द्वारा पृथिवी जीवन देती है, रेवती आदि नक्षत्रों में गति करता हुआ चन्द्रमा चमकता है ॥२॥
विषय
सर्वाश्रय सोम। वीर्य और शक्ति की महत्ता। सर्वोत्पादक सामर्थ्य सोम।
भावार्थ
(आदित्याः सोमेन बलिनः) सूर्य की रश्मियां पृथिवी पर ओषधि, और आकाश में मेघ और विद्युत् आदि उत्पादक सामर्थ्य रूप ‘सोम’ तत्व के द्वारा ही बल से युक्त हैं। इसी प्रकार (आदित्याः) सूर्य और पृथिवी से उत्पन्न ऋतु, दिन, मास और पृथिवी पर उत्पन्न अनेक पशुपक्षी, मनुष्य, समस्त प्राणीगण ये सब (सोमेन बलिनः) ‘सोम’ अर्थात् स्वसन्तान के उत्पादक वीर्य रूप सामर्थ्य से ही बलशाली हैं। यदि वे वीर्य-हीन हों तो निर्बल और नपुंसक उत्साहहीन हो जाते हैं। इसी प्रकार ‘सोम’ अर्थात् उत्पादक तत्त्व वीर्य के द्वारा ही (आदित्याः) ‘अदिति’ अर्थात् माता पिता से उत्पन्न होने वाले पुत्र और पुत्री आदि सन्तान भी (बलिनः) बल से युक्त, हृष्ट पुष्ट उत्पन्न होते हैं, हीनवीर्य से सन्तानें भी हीनवीर्य वाली होती हैं। (सोमेन) उत्पादक वीर्य के द्वारा ही (पृथिवी मही) यह भूमि अनेक पशु-पक्षी आदि जीवों का विस्तार करती है, उसी को पृथिवी ने अपने समस्त पृष्ठ, जल-स्थल पर सर्वत्र फैला रक्खा है। इसी प्रकार पृथिवी के सदृश सर्वोत्पादक प्रकृति उत्पादक ब्रह्म से (मही) महान् शक्ति वाली है। उत्पादक सामर्थ्य रूप सोम अर्थात् रज वीर्य के द्वारा ही, पृथिवीवत् स्त्री भी (मही) पूजनीय होती हैं। वह सामान्य स्त्री के पद से पूज्य माता के पद को प्राप्त करती है। यदि उत्तम रज-वीर्य न हों तो स्त्री वन्ध्या होकर मान आदर वा माता होने का सौभाग्य नहीं पाती। (अथो) और (एषां नक्षत्राणाम् उपस्थे) इन नक्षत्रों के बीच में जिस प्रकार (सोमः आहितः) चन्द्र स्थित होता और शोभा देता है उसी प्रकार (एषां) इन (नक्षत्राणाम्) ‘नक्षत्र’ अर्थात् अक्षत वीर्य वाले ब्रह्मचारी पुरुषों के (उपस्थे) अंग में (सोमः आहितः) प्रजा का उत्पादक वीर्य सुरक्षित होता है। और (एषां नक्षत्राणां) एक दूसरे को आदरपूर्वक प्राप्त होने वाले गृहस्थ पुरुषों के (उपस्थे) गोद में (सोमः आहितः) पुत्र स्थित होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥
विषय
देवत्व, शक्ति व विज्ञान
पदार्थ
[१] (सोमेन) = गत मन्त्र की समाप्ति पर कहे गये सोम के रक्षण से (आदित्याः) = अदीना देवमाता के पुत्र, अर्थात् देवता (बलिनः) = बलवाले होते हैं । वस्तुतः सोमरक्षण से ही वे देव बनते हैं। देवताओं का सोमपान प्रसिद्ध है। यह कोई बाह्य रस नहीं है। शरीर में उत्पन्न होनेवाला ओषधियों का सारभूत सोम यह वीर्य ही है। इसका रक्षण देवों को शक्ति देता है। [२] (सोमेन)= सोम से ही (पृथिवी) = यह शरीररूप पृथिवी (मही) = महनीय व महत्त्वपूर्ण बनती है। शरीर में सब वसुओं निवास के लिए आवश्यक तत्त्वों का स्थापन इस सोम के द्वारा ही होता है [३] (उ) = और (अथ) = अब (एषां नक्षत्राणां उपस्थे) = इन विविध विज्ञान के नक्षत्रों की उपासना के निमित्त (सोमः) = यह सोम [= वीर्य] (आहितः) = शरीर में स्थापित किया गया है। इस सोम के द्वारा ज्ञानाग्नि तीव्र होती है और मनुष्य अपने मस्तिष्क रूप गगन में ज्ञान के नक्षत्रों का उदय कर पाता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण के तीन लाभ हैं- [क] हृदय में देववृत्ति का उदय, [ख] शरीर में शक्ति का स्थापन, [ग] मस्तिष्क में विज्ञान नक्षत्रों का उदय ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोमेन-आदित्याः-बलिनः) परमात्मरचितेन सोमवता खलूत्पादक-पदार्थेन किरणाः-बलवन्तो भवन्ति (सोमेन-पृथिवी मही) पृथिवीस्थेन सोमाद्योषधिना पृथिवी जीवननिर्वाहाय महत्त्वयुक्ता भवति (अथ-उ) अथ च (नक्षत्राणाम्-उपस्थे) रेवत्यादीनां नक्षत्राणां मध्ये (सोमः-आहितः) चन्द्रमाः स्थितः शोभते ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The Adityas are mighty by Soma, divine energy and law of existence. By Soma, the earth is great and adorable. And in the closest environment of these stars Soma is abiding in concentrations as sustaining energy.
मराठी (1)
भावार्थ
उत्पादक धर्माच्या पदार्थांनी किरणे बलवान बनतात. सोम इत्यादी औषधींद्वारे पृथ्वी जीवन देते व रेवती इत्यादी नक्षत्रात गती करत चंद्रमा चमकतो. ॥२॥
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