ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 6
ऋषिः - सूर्या सावित्री
देवता - सूर्याविवाहः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
रैभ्या॑सीदनु॒देयी॑ नाराशं॒सी न्योच॑नी । सू॒र्याया॑ भ॒द्रमिद्वासो॒ गाथ॑यैति॒ परि॑ष्कृतम् ॥
स्वर सहित पद पाठरैभी॑ । आ॒सी॒त् । अ॒नु॒ऽदेयी॑ । ना॒रा॒शं॒सी । नि॒ऽओच॑नी । सू॒र्यायाः॑ । भ॒द्रम् । इत् । वासः॑ । गाथ॑या । ए॒ति॒ । परि॑ऽकृतम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
रैभ्यासीदनुदेयी नाराशंसी न्योचनी । सूर्याया भद्रमिद्वासो गाथयैति परिष्कृतम् ॥
स्वर रहित पद पाठरैभी । आसीत् । अनुऽदेयी । नाराशंसी । निऽओचनी । सूर्यायाः । भद्रम् । इत् । वासः । गाथया । एति । परिऽकृतम् ॥ १०.८५.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सूर्यायाः) सूर्य की दीप्ति-उषा के समान कान्तिवाली नववधू की (रेभी-अनुदेयी-आसीत्) उपदेश करनेवाले पुरोहित की शिक्षा दी जानी चाहिए विवाह के पश्चात् (नाराशंसी न्योचनी) मनुष्यसम्बन्धी संवेदना भी देने योग्य है। (भद्रम्-इत्-वासः) कल्याणसाधक वस्त्र या स्थान ही (परिष्कृतम्) सुशोभित (गाथया-एति) आशीर्वादरूप वाणी से प्राप्त करती है ॥६॥
भावार्थ
सुशोभित हुई नववधू को पुरोहित के द्वारा शिक्षा दी जानी चहिये तथा वृद्ध महानुभावों के द्वारा आश्वासन और आशीर्वाद भी देने योग्य है, सुन्दर वस्त्र देने चाहिएँ ॥६॥
विषय
सूर्या का विवाह। वधू के साथ देने योग्य सर्वश्रेष्ठ शिक्षा और दहेज, वधू की ओढ़नी।
भावार्थ
(रैभी) उपदेश देने वाले विद्वान् पुरुषों की शिक्षा ही (अनुदेयी आसीत्) अनुदेयी अर्थात् विवाह के अनन्तर देने योग्य हो। (नाराशंसी नि-ओचनी) मनुष्यों की स्तुति ही वधू के लिये उत्तम सेविका वा, उत्तम वस्त्र वा ओढ़नी हो। (सूर्यायाः) उषा के समान नव कान्ति से युक्त नववधू का (वासः) आच्छादन वस्त्र (गाथया परिष्कृतम्) गाथा से सुशोभित (भद्रम्) अति सुखकारक रूप में (एति) प्राप्त होता है। सायण के मत में—‘रेभी’ नाम ऋचाएं हैं जो सूर्या के विवाह के अवसर में कन्या के विनोदार्थ साथ दान की जाने योग्य सखी के समान हों, नाराशंसी नाम ‘प्रातारत्नम् ०’ इत्यादि ऋचाएं (ऋ०१।१२५) उसकी निओचनी अर्थात् दासी के तुल्य हैं। उसका वस्त्र ‘गाथा’ गान करने योग्य ब्राह्मण ग्रन्थ प्रोक्त विशेष ऋचा से सुशोभित हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥
विषय
सूर्या का चरित्र
पदार्थ
[१] अब प्रथम पाँच मन्त्रों में सोम के महत्त्व के प्रतिपादन के बाद इस सोम के रक्षण करनेवाले पुरुष के साथ सूर्या के विवाह का उल्लेख ६ से १६ मन्त्रों तक किया गया है इस विवाह के समय (रैभी) = जिसके द्वारा प्रभु का स्तवन होता है वह ऋचा 'रैभी' कहलाती है यह रैभी ऋचा ही (अनुदेयी आसीत्) = दहेज थी, अर्थात् पिता कन्या को ऋचाओं के द्वारा प्रभुस्तवन की वृत्तिवाली बना देता है। यह स्तुति वृत्तिवाली बना देना ही सर्वोत्तम दहेज देना है। [२] (नाराशंसी) = नर समूह के शंसन की वृत्ति सबकी अच्छाइयों का ही कथन करने और कमियों को न कहने की वृत्ति ही इसकी (न्योचनी) = इसको ठीक आनेवाली इसकी कमीज होती है । स्तवन, न किं विन्दन, की वृत्ति ही उसके उचित वस्त्र हैं। अथवा (नाराशंसी) = वीर पुरुषों के चरित्रों का शंसन इनके इतिवृत्त का ज्ञान ही इसका समुचितवसन है। [३] (भद्रम्) = इसकी भद्रता [ शराफत ] (इत्)- = ही (वासः) = ओढ़ने का कपड़ा है जो (गाथया परिष्कृतम्) = गाथा से परिष्कृत हुआ हुआ एति इसे प्राप्त होता है। जैसे वस्त्रा किनारी आदि से सुभूषित होता है उसी प्रकार इसकी भद्रता का यह वस्त्र प्रभु गुणगान से सुभूषित है। संक्षेप में यह कन्या भद्र व्यवहारवाली है और प्रभु के गुणों के गायन की वृत्तिवाली है ।
भावार्थ
भावार्थ - कन्या को स्तुति वृत्तिवाला बना देना ही सच्चा दहेज है। स्तवन, न कि निन्दन ही इसकी कमीज है। भद्रता ही वस्त्र है जो प्रभु गुणगायन से परिष्कृत है।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सूर्यायाः) सूर्यस्य दीप्त्याः-उषसः इव कान्तिमत्याः खलु नववध्वः (रेभी-अनुदेयी-आसीत्) उपदेशकस्य पुरोहितस्य शिक्षा विवाहानन्तरं दातव्यास्ति (नाराशंसी न्योचनी) नराणां सम्बन्धिजनानां संवेदनापि दातव्या (भद्रम्-इत्-वासः) कल्याणसाधकमेव वस्त्रं स्थानं वा (परिष्कृतम्) सुशोभितं (गाथया-एति) वाचा-आशीर्वाचा प्राप्नोति ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Raibhi verses of the Veda are the bride’s wedding gifts, Narashansi verses, the bride’s ornaments, grace and good fortune, her bridal robes sanctified by exemplary verses relating to the good life.
मराठी (1)
भावार्थ
सुशोभित नववधूला पुरोहिताद्वारे उपदेश दिला पाहिजे व वृद्धमहानुभावांद्वारे आश्वासन व आशीर्वादही देणे योग्य आहे. तिला सुंदर वस्त्रेही दिली पाहिजेत. ॥६॥
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