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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 46
    ऋषिः - सूर्या सावित्री देवता - सूर्या छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    स॒म्राज्ञी॒ श्वशु॑रे भव स॒म्राज्ञी॑ श्व॒श्र्वां भ॑व । नना॑न्दरि स॒म्राज्ञी॑ भव स॒म्राज्ञी॒ अधि॑ दे॒वृषु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्ऽराज्ञी॑ । श्वशु॑रे । भ॒व॒ । स॒म्ऽराज्ञी॑ । श्व॒श्र्वाम् । भ॒व॒ । नना॑न्दरि । स॒म्ऽराज्ञी॑ । भ॒व॒ । स॒म्ऽराज्ञी॑ । अधि॑ । दे॒वृषु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सम्राज्ञी श्वशुरे भव सम्राज्ञी श्वश्र्वां भव । ननान्दरि सम्राज्ञी भव सम्राज्ञी अधि देवृषु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्ऽराज्ञी । श्वशुरे । भव । सम्ऽराज्ञी । श्वश्र्वाम् । भव । ननान्दरि । सम्ऽराज्ञी । भव । सम्ऽराज्ञी । अधि । देवृषु ॥ १०.८५.४६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 46
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (श्वशुरे) हे वधू ! तू श्वशुर-मेरे पिता के अन्दर अपने व्यवहार से (सम्राज्ञी भव) महाराणी के पद को प्राप्त कर (श्वश्र्वाम्) सास-मेरी माता के अन्दर भी (सम्राज्ञी भव) महाराणी हो (ननान्दरि) ननद-मेरी बहन के अन्दर (सम्राज्ञी भव) महाराणी का पद प्राप्त कर (देवृषु अधि) देवरों-मेरे भ्राताओं में (सम्राज्ञी) महाराणी का पद प्राप्त कर ॥४६॥

    भावार्थ

    वधू का परिवार में व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि वह श्वशुर, सास, ननद और देवरों के अन्दर सम्मान और स्नेह महाराणी की भाँति प्राप्त कर सके ॥४६॥

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    विषय

    नववधू की सम्राज्ञी होने की प्रतिष्ठा।

    भावार्थ

    हे स्त्रि ! तू (श्वशुरे सम्-राज्ञा अधि भव) शशुर के अधीन उत्तम गुणों से सब से अधिक सुशोभित हो। तू (श्वश्र्वां) सास के अधीन रह कर भी (सम्राज्ञी) उत्तम गुणों से कान्तियुक्त, चमकने वाली रानी के सदृश (भव) हो। तू (ननान्दरि सम्राज्ञी भव) ननदों के बीच में उत्तम गुणों से सुशोभित रानी के तुल्य हो। और (देवृषु अधि) देवरों के बीच सब से अधिक दीप्तियुक्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥

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    विषय

    सम्राज्ञी

    पदार्थ

    [१] पत्नी को घर में आकर घर का समुचित प्रबन्ध करना है। उससे कहते हैं कि यहाँ तू परायापन अनुभव न करना । परायेपन की बात तो दूर रही तू (श्वशुरे) = श्वशुर में सम्राज्ञी (भव) = सम्राज्ञी बन । उनके सब कार्यों के नियमित रूप से चलने की व्यवस्था कर । [सम्= सम्यक्, राज्=to regrlete]। इसी प्रकार (श्वश्र्वाम्) = श्वश्रू के विषय में (सम्राज्ञी भव) = सम्राज्ञी हो । [२] (ननान्दरि) = ननद के विषय में (सम्राज्ञी भव) = सम्राज्ञी हो और (अधिदेवृषु) = सब देवरों में भी (सम्राज्ञी) = तू सम्राजी हो । यहाँ शासन या हुकूमत की भावना उतनी नहीं है जितना उनके कार्यों की व्यवस्था की उत्तमता से उनके रञ्जन का भाव है।

    भावार्थ

    भावार्थ- पत्नी ने घर में सबके कार्यों की समुचित व्यवस्था करके सभी का रञ्जन करना है ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (श्वशुरे सम्राज्ञी भव) हे वधु ! त्वं श्वशुरे मम पितरि तदन्तरे स्वव्यवहारेण सम्राज्ञीव सम्यग्राजमाना भव (श्वश्र्वां सम्राज्ञी भव) मम मातरि-मातुरन्तःकरणेऽपि सम्राज्ञीव विराजमाना भव (ननान्दरि सम्राज्ञी भव) मम स्वसरि स्वसुरन्तरे सम्राज्ञीव राजमाना भव (देवृषु-अधि सम्राज्ञी) मम भ्रातृषु खल्वपि सम्राज्ञीव राजमाना भव ॥४६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Be a darling queen for the father-in-law, be a favourite queen for the mother-in-law, be a loving queen for the sister-in-law, and a kind queen for the brothers- in-law.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    वधूचा परिवारामध्ये असा व्यवहार असावा, की तिने सासरे, सासू, नणंद व दीर यांच्यामध्ये महाराणीप्रमाणे सन्मान व स्नेह प्राप्त करावा. ॥४६॥

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