ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 9
ऋषिः - सूर्या सावित्री
देवता - सूर्याविवाहः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
सोमो॑ वधू॒युर॑भवद॒श्विना॑स्तामु॒भा व॒रा । सू॒र्यां यत्पत्ये॒ शंस॑न्तीं॒ मन॑सा सवि॒ताद॑दात् ॥
स्वर सहित पद पाठसोमः॑ । व॒धू॒ऽयुः । अ॒भ॒व॒त् । अ॒श्विना॑ । आ॒स्ता॒म् । उ॒भा । व॒रा । सू॒र्याम् । यत् । पत्ये॑ । शंस॑न्तीम् । मन॑सा । स॒वि॒ता । अद॑दात् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो वधूयुरभवदश्विनास्तामुभा वरा । सूर्यां यत्पत्ये शंसन्तीं मनसा सविताददात् ॥
स्वर रहित पद पाठसोमः । वधूऽयुः । अभवत् । अश्विना । आस्ताम् । उभा । वरा । सूर्याम् । यत् । पत्ये । शंसन्तीम् । मनसा । सविता । अददात् ॥ १०.८५.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 9
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मनसा शंसन्तीं सूर्याम्) मन से पति को चाहती हुई ब्रह्मचर्य और यौवन से सम्पन्न तेजस्वी कन्या को (सविता यत् पत्ये-अददात्) कन्या को उत्पन्न करनेवाला पिता जब पति के लिये-वर के लिये देता है, तब (सोमः-वधूयुः-अभवत्) सोम्यगुणसम्पन्न वीर्यवान् ब्रह्मचारी वधू को प्राप्त करने की इच्छावाला प्राप्त हो जाता है (अश्विना-वरा-आस्ताम्) वे दोनों परस्पर प्राण-अपान के समान एक दूसरे को वरण करनेवाले साथी हो जाते हैं ॥९॥
भावार्थ
जब कन्या ब्रह्मचर्य और यौवन से पूर्ण हो जाए, पति की इच्छा रखती हुई हो, तो उसका पिता सोम्यगुण ब्रह्मचर्य से सम्पन्न युवा वधू की इच्छा रखते हुए के साथ्विवाह कर दे और पुनः वे दोनों अविरोधी भाव से मिलकर रहें ॥९॥
विषय
वधू की कामनावान् पुरुष सोम। पिता कन्या को कब दान करे।
भावार्थ
(सोमः) वीर्यवान्, नवयुवक विद्वान् पुरुष (वधूयुः अभवत्) वधू की कामना करने वाला हो। और (उभा) दोनों वर और वधू (अश्विना) जितेन्द्रिय, एक दूसरे के चित्त में व्यापक होकर (वरा) एक दूसरे को वरण करने वाले (आस्ताम्) हों, (यत्) जब कि (सविता) कन्या का पिता (मनसा) मन से (पत्ये) पति को प्राप्त करने के लिये (शंसन्तीम्) आशंसा वा इच्छा करती हुई (सूर्याम्) कन्या को (पत्ये अददात्) पालन करने में समर्थ, ऐश्वर्ययुक्त पुरुष के लिये दान करे। वधू—वहतीति वधूः। जो गृहस्थ-भार को व सन्तान को वहन कर सके। (२) ‘ऊह्यते इति वधूः’ जिसको पुरुष अपने आश्रय में धारण करता है वह ‘वधू’ है। उसकी कामना करने वाला वा उसका स्वामी ‘वधूयु’ ‘सोम’ शब्द से कहाता है। वह सन्तान उत्पन्न करने में समर्थ, वा वीर्यवान् होने से ‘सोम’ कहाता है। पिता तभी कन्या को दे जब कन्या पति के लिये उत्सुक हो। वह उस पुरुष के हाथ कन्या को दान करे। यह दान उसका मनःसंकल्प द्वारा ही होता है। यह प्रदान कन्या को विवाह करने वाले वर के हाथों में देने पर भी पिता के पितृत्व का विलोप नहीं करता।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥
विषय
'सूर्या' का 'सोम' के साथ विवाह
पदार्थ
[१] पत्नी को 'सूर्या' बनना चाहिए तो पति को 'सोम' बनने का प्रयत्न करना चाहिए । पति सोम का रक्षण करता हुआ सोमशक्ति का पुत्र हो, इस सोमशक्ति के रक्षण से वह सौम्य स्वभाव का भी हो। यह (सोमः) = सोमशक्ति का रक्षक सौम्य स्वभाव का युवक (वधूयुः अभवत्) = वधू की कामनावाला हुआ। जब यह वधू की कामनावाला हुआ तो (उभा अश्विना) = दोनों माता-पिता (वरा) = उसके साथी का चुनाव करनेवाले (आस्ताम्) = हुए। [२] सूर्या के माता-पिता युवक की तलाश में थे, सोम के माता-पिता भी योग्य युवति की खोज कर रहे थे। अग्नि ज्ञानी आचार्य ने उनका पथप्रदर्शन किया। उसके सुझाव पर (यत्) = जब (सूर्या यत्ये शंसन्तीम्) = पति का शंसन [इच्छा] करनेवाली हुई तब (सूर्याम्) = उस सूर्या को (सविता) = सूर्यतुल्य इसके पिता ने इसे (मनसा) = पूरे दिल से सोम के लिये अददात् दे दिया। इस प्रकार सूर्या का सोम के साथ विवाह सम्पन्न हो गया।
भावार्थ
भावार्थ- 'युवक पत्नी की कामनावाला हो, युवति पति की कामनावाली' तो उनके माता पिता को उनके विवाह सम्बन्ध का आयोजन कर देना चाहिए ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मनसा शंसन्तीं सूर्याम्) मनसा कामयमानां ब्रह्मचर्ययौवनाभ्यां तेजस्विनीं कन्याम् (सविता यत् पत्ये-अददात्) कन्याया उत्पादयिता पिता यदा पत्ये वराय ददाति, तदा (सोमः-वधूयुः-अभवत्) सोम्यगुणसम्पन्नो वीर्यवान् ब्रह्मचारी वधूं प्राप्तुकामो भवति प्राप्नुयात् (अश्विना-वरा-आस्ताम्) तौ प्राणापानाविव परस्परं वरयितारौ रक्षणकर्तारौ भवतः ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma is the proposer and Ashvins, pranic energies, the first attraction and attention, when Savita, giver of life and light, gives away the bride, love-lorn at heart, to the groom.
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा कन्या ब्रह्मचर्य व यौवनाने पूर्ण होते व पतीची कामना करते तेव्हा तिच्या पित्याने सोम्यगुण-ब्रह्मचर्याने संपन्न युवा वधूची इच्छा असणाऱ्याबरोबर विवाह करून द्यावा व नंतर त्यांनी दोघांनी अविरोधी भावाने राहावे. ॥९॥
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