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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 36
    ऋषिः - सूर्या सावित्री देवता - सूर्या छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    गृ॒भ्णामि॑ ते सौभग॒त्वाय॒ हस्तं॒ मया॒ पत्या॑ ज॒रद॑ष्टि॒र्यथास॑: । भगो॑ अर्य॒मा स॑वि॒ता पुरं॑धि॒र्मह्यं॑ त्वादु॒र्गार्ह॑पत्याय दे॒वाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गृ॒भ्णामि॑ । ते॒ । सौ॒भ॒ग॒ऽत्वाय॑ । हस्त॑म् । मया॑ । पत्या॑ । ज॒रत्ऽअ॑ष्टिः । यथा॑ । असः॑ । भगः॑ । अ॒र्य॒मा । स॒वि॒ता । पुर॑म्ऽधिः । मह्य॑म् । त्वा॒ । अ॒दुः॒ । गार्ह॑ऽपत्याय । दे॒वाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गृभ्णामि ते सौभगत्वाय हस्तं मया पत्या जरदष्टिर्यथास: । भगो अर्यमा सविता पुरंधिर्मह्यं त्वादुर्गार्हपत्याय देवाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गृभ्णामि । ते । सौभगऽत्वाय । हस्तम् । मया । पत्या । जरत्ऽअष्टिः । यथा । असः । भगः । अर्यमा । सविता । पुरम्ऽधिः । मह्यम् । त्वा । अदुः । गार्हऽपत्याय । देवाः ॥ १०.८५.३६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 36
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ते हस्तम्) हे वधू ! तेरे हाथ को (सौभगत्वाय गृभ्णामि) सौभाग्य के लिये मैं पति ग्रहण करता हूँ (मया पत्या) मुझ पति के साथ (यथा जरदष्टिः-असः) जैसे ही तू जरापर्यन्त सुख भोगनेवाली हो (भगः-अर्यमा सविता) ऐश्वर्यवान् परमात्मा, पुरोहित, जनक-तेरा पिता (पुरन्धिः-देवाः) नगरधारक राजकर्मचारी, ये सब देवभूत पूजनीय महानुभाव (गार्हपत्याय) गृहस्थाश्रम के पति होने के लिये (त्वा मह्यम्-अदुः) तुझे मेरे लिये देते हैं ॥३६॥

    भावार्थ

    विवाहसम्बन्ध परमात्मा के आदेशानुसार पुरोहित, पिता, नगराधिकारी इनके साक्षित्व में होना चाहिए। पति-पत्नी का सम्बन्ध गृहस्थ में एक दूसरे को जरापर्यन्त पालन के ढंग का होता है ॥३६॥

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    विषय

    पाणि ग्रहण के मन्त्र। वर का वधू का हस्तग्रहण करते हुए वधू ग्रहण करने और आजन्म-सम्बन्ध का उद्घोषणा।

    भावार्थ

    हे वधू ! मैं (तव) तेरे (हस्तं) हाथ को (सौभग-त्वाय) सौभाग्य की वृद्धि के लिये (गृभ्णामि) ग्रहण करता हूँ। (यथा) जिस प्रकार से तू (मया सह) मेरे साथ (जरद्-अष्टिः) वृद्धावस्था भोगने वाली (असः) हो। (भगः) ऐश्वर्यवान्, (अर्यमा) न्यायकारी, (सविता) उत्पादक, सबका अनुज्ञादायक और (पुरं-धिः) देहों का धारक-पोषक आत्मा और (देवाः) विद्वान् पुरुष (गार्हपत्याय) गृहपति के कार्य, गृहस्थ सम्पादन के लिये (त्वा) तुझे (मह्यं अदुः) मेरे लिये प्रदान करते हैं।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥

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    विषय

    'भग- अर्यमा - सविता पुरन्धि-देवाः '

    पदार्थ

    [१] पति पत्नी से कहता है कि मैं (सौभगत्वाय) = सौभाग्य के लिये, गृह को सुभग सम्पन्न बनाने के लिये (ते हस्तं गृह्णामि) = तेरे हाथ को ग्रहण करता हूँ। तेरे साथ मिलकर मेरे द्वारा यह घर सौभाग्यवाला हो। (यथा) = जिससे (मयापत्या) = मुझ पति के साथ इस घर को सौभाग्य सम्पन्न बनाती हुई तू (जरदष्टिः असः) = जरावस्था का व्यापन करनेवाली हो। इस सुभग गृह में उत्तम जीवनवाले हम दीर्घजीवन को प्राप्त करें। [२] (भगः, अर्यमा, सविता, पुरन्धिः, देवा:) = भग, अर्यमा, सविता, पुरन्धि और देवों ने (त्वा) = तुझे (गार्हपत्याय) = गृहपतित्व के लिये, गृह के कार्य को सम्यक् चलाने के लिये (मह्यम्) = मेरे लिये (अदुः) = दिया है। अर्थात् तेरे माता-पिता ने यह देखकर कि—[क] मैं धन को उचित रूप में कमानेवाला हूँ [भगः], [ख] काम-क्रोधादि शत्रुओं का शिकार नहीं होता [अर्यमा], [ग] निर्माणात्मक कार्यों में अभिरुचिवाला हूँ [सविता], [घ] पालक बुद्धि से युक्त हूँ [ पुरन्धि:], [ङ] उत्तम गुणों को अपनाये हुए हूँ [देवाः] । यह सब कुछ देखकर ही उन्होंने तेरे हाथ को मेरे हाथ में दिया है।

    भावार्थ

    भावार्थ- पति को ऐश्वर्य कमानेवाला, कामादि को वश में करनेवाला, निर्माणरुचि, पालक बुद्धिवाला व दिव्य गुणों को धारण करनेवाला होना चाहिए।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ते हस्तं सौभगत्वाय गृभ्णामि) हे वधु ! तव हस्तं सौभाग्यायाहं गृह्णामि (मया पत्या यथा जरदष्टिः-असः) यथा हि मया पत्या त्वं जरापर्यन्तं सुखभोगिनी भवेः (भगः-अर्यमा सविता पुरन्धिः-देवाः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा पुरोहितो जनको नगरधारको राजकर्मचारी देवभूताः (गार्हपत्याय) गृहस्थाश्रमस्य पतिभावाय (त्वा मह्यम्-अदुः) त्वां मह्यं प्रयच्छन्ति ॥३६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    I take your hand for the sake of good fortune so that you may live a long full life till old age with me, your husband. Bhaga, lord of glory, Aryama, lord of cosmic order, Savita lord giver of life and light, and Purandhi, divine beneficence, have given you to me for the creation of a happy home and family.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विवाहसंबंध परमात्म्याच्या आदेशानुसार पुरोहित, पिता, नगराधिकारी यांच्या साक्षीने व्हावा. पती-पत्नी संबंध गृहस्थाश्रमात एक दुसऱ्याला वृद्धावस्थेपर्यंत पालन करण्यातच आहे. ॥३६॥

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