ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 40
ऋषिः - सूर्या सावित्री
देवता - सूर्या
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
सोम॑: प्रथ॒मो वि॑विदे गन्ध॒र्वो वि॑विद॒ उत्त॑रः । तृ॒तीयो॑ अ॒ग्निष्टे॒ पति॑स्तु॒रीय॑स्ते मनुष्य॒जाः ॥
स्वर सहित पद पाठसोमः॑ । प्र॒थ॒मः । वि॒वि॒दे॒ । ग॒न्ध॒र्वः । वि॒वि॒दे॒ । उत्ऽत॑रः । तृ॒तीयः॑ । अ॒ग्निः । ते॒ । पतिः॑ । तु॒रीयः॑ । ते॒ । म॒नु॒ष्य॒ऽजाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोम: प्रथमो विविदे गन्धर्वो विविद उत्तरः । तृतीयो अग्निष्टे पतिस्तुरीयस्ते मनुष्यजाः ॥
स्वर रहित पद पाठसोमः । प्रथमः । विविदे । गन्धर्वः । विविदे । उत्ऽतरः । तृतीयः । अग्निः । ते । पतिः । तुरीयः । ते । मनुष्यऽजाः ॥ १०.८५.४०
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 40
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ते) हे कन्या ! तेरा (प्रथमः) प्रथम पालक (सोमः-विविदे) सोमधर्मयुक्त रजोधर्म तुझे प्राप्त होता है (उत्तरः) इसके उत्तर पालक (गन्धर्वः) रश्मि धर्मवाला सूर्य प्राप्त करता है (तृतीयः) तीसरा पालक (अग्निः) यज्ञाग्नि प्राप्त करता है (तुरीयः) चतुर्थ पालक (ते मनुष्यजाः) तेरा मनुष्यजाति में उत्पन्न पति है ॥४०॥
भावार्थ
कन्या की प्रथम स्थिति रजोधर्म की ओर चलती है, फिर उत्तेजना धाराएँ उत्पन्न होती हैं, फिर विवाहसंस्कार में आग्नेय धर्म वाली उत्साहप्रवृत्तियाँ जागती हैं, पश्चात् मनुष्यसम्पर्क प्राप्त हो जाता है, जो अन्तिम कृतकार्य की स्थिति है ॥४०॥
विषय
कन्या को सोम, गन्धर्व और अग्नि की प्राप्ति। इसका स्पष्टीकरण।
भावार्थ
(सोमः) प्रजा को उत्पादन करने का सामर्थ्य (प्रथमः) सब से प्रथम (विविदे) कन्या को प्राप्त हो, (उत्तरः) उसके अनन्तर (गन्धर्वः) गन्ध से युक्त अंश, रजो भाव (विविदे) प्राप्त होता है। हे कन्ये (तृतीयः) तीसरे नम्बर पर (ते पतिः अग्निः) तेरा पालक पति अग्नि के तुल्य तेजस्वी, वा उष्णता-प्रधान तत्व तेरा पालक है। (तुरीयः) चौथा (ते पतिः) तेरा पालक (मनुष्यजाः) मनुष्य से उत्पन्न-पालक पुरुष है। कन्या में प्रथम उत्पादक शक्ति, द्वितीय गन्ध-विशेष, फिर उष्णतायुक्त रजोभाव प्राप्त होता है, अनन्तर मनुष्य, विवाह करके उसको पालक पति रूप से प्राप्त होता है।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥
विषय
' सोम- गन्धर्व-अग्नि-मनुष्यजा'
पदार्थ
[१] सब से (प्रथमः) = पहले (सोमः) = सोम विविदे इस कन्या को प्राप्त करता है । अर्थात् कन्या के माता-पिता सब से पहली बात तो यह देखते हैं कि पति 'सोम' है या नहीं। पति का स्वभाव सौम्य है या नहीं। [२] फिर इस कन्या को (गन्धर्वः) = ' गां वेदवाचं धारयति' ज्ञान की वाणियों को धारण करनेवाला पति प्राप्त करता है। यह (उत्तर:) = अधिक उत्कृष्ट होता है । 'सौम्यता' यदि पति का पहला गुण है तो 'ज्ञान की वाणियों को धारण करना' उसका दूसरा गुण है। [३] (तृतीयः) = तीसरे स्थान पर (अग्निः) = प्रगतिशील मनोवृत्तिवाला (ते पतिः) = तेरा पति है । अर्थात् तेरा पति वह है जो आगे बढ़ने की वृत्तिवाला है। जिसमें कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं उसने क्या उन्नति करनी ? [४] (तुरीयः) = चौथा (ते पतिः) = तेरा पति वह है जो कि (मनुष्यजाः) = मनुष्य की सन्तान है, अर्थात् जिसमें मानवता है । जिसका स्वभाव दयालुतावाला है, क्रूरतावाला नहीं ।
भावार्थ
भावार्थ- पति में निम्न विशेषताएँ आवश्यक हैं— [क] सौम्यता, [ख] ज्ञान, [ग] प्रगतिशीलता, [घ] मानवता ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ते) हे कन्ये ! तव (प्रथमः सोमः-विविदे) चन्द्रः सोमधर्मः-रजोधर्मस्त्वां प्राप्नोति (उत्तरः-गन्धर्वः) तदुत्तरः-सूर्योरश्मिधर्मस्त्वां प्राप्नोति (तृतीयः-अग्निः) तृतीयोऽग्निर्यज्ञाग्निर्वैवाहिको यज्ञाग्निस्त्वां प्राप्नोति (तुरीयः-ते मनुष्यजाः) चतुर्थस्ते पतिः-पालको भवति मनुष्यजातः ॥४०॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Surya, bright girl, your first protective and promotive guardian is Soma, nature’s energy which leads you to puberty. The next is Gandharva which energises you with fertility. The third is Agni which inspires you with love and passion. And your fourth guardian is your husband, son of man, for the extension of humanity.
मराठी (1)
भावार्थ
कन्येची प्रथम स्थिती रजोधर्म होय. नंतर उत्तेजनेच्या धारा उत्पन्न होतात. नंतर विवाहसंस्कारात आग्नेय धर्माच्या उत्साह प्रवृत्ती जागृत होतात. त्यानंतर मनुष्यसंपर्क प्राप्त होतो, जी अंतिम कृतकार्य स्थिती आहे. ॥४०॥
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