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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 38
    ऋषिः - सूर्या सावित्री देवता - सूर्या छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    तुभ्य॒मग्रे॒ पर्य॑वहन्त्सू॒र्यां व॑ह॒तुना॑ स॒ह । पुन॒: पति॑भ्यो जा॒यां दा अ॑ग्ने प्र॒जया॑ स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तुभ्य॑म् । अग्रे॑ । परि॑ । अ॒व॒ह॒न् । सू॒र्याम् । व॒ह॒तुना॑ । स॒ह । पुन॒रिति॑ । पति॑ऽभ्यः । जा॒याम् । दाः । अ॒ग्ने॒ । प्र॒ऽजया॑ । स॒ह ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुभ्यमग्रे पर्यवहन्त्सूर्यां वहतुना सह । पुन: पतिभ्यो जायां दा अग्ने प्रजया सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तुभ्यम् । अग्रे । परि । अवहन् । सूर्याम् । वहतुना । सह । पुनरिति । पतिऽभ्यः । जायाम् । दाः । अग्ने । प्रऽजया । सह ॥ १०.८५.३८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 38
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अग्ने) हे विवाहसंस्कार में प्रयुक्त अग्ने ! कन्या के सम्बन्धी-जन (अग्रे तुभ्यम्) प्रथम तेरे लिये विवाहसंस्कारकार्यार्थ (सूर्यां परि-अवहन्) तेजस्वी वधू को समर्पित करते हैं (वहतुना सह) वोढा पति के साथ (पुनः) पुनः तू अग्ने ! (पतिभ्यः प्रजया सह जायां दाः) पति तथा पति के पारिवारिक जनों के लिये प्रजनन शक्ति से युक्त सन्तान उत्पादन योग्य कन्या को देता है ॥३८॥

    भावार्थ

    कन्या का विवाह इसके पितृगण को तब करना चाहिये, जब कन्या प्रजनन शक्ति से पूर्ण सन्तान उत्पन्न करने में योग्य हो। तब पति और उसके सम्बन्धी मित्रों के सम्मुख समारोह करके देना चहिये ॥३८॥

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    विषय

    अग्निवत् विद्वान् वा प्रभु की साक्षिता में वधू का परिग्रह।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्विन् ! (तुभ्यम्) तेरे (अग्रे) आगे, तेरी समक्षता में (वहतुना सह) लोग दहेज आदि सहित (सूर्याम्) पुत्रोत्पादन समर्थ कन्या को (परि अवहन्) परिक्रमण द्वारा वहन, धारण करते, तेरी साक्षिता में विवाह करते हैं। (पुनः) और तू (पतिभ्यः) पालक जनों को (प्रजया सह) उत्तम सन्तान सहित (जायां दाः) स्त्री प्रदान कर, अर्थात् विवाहित पुरुष को उत्तम सन्तान से सम्पन्न कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥

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    विषय

    अग्नि के द्वारा 'सम्बन्ध'

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (सूर्याम्) = इस सूर्या को इसके माता-पिता (वहतुना सह) = सम्पूर्ण दहेज के साथ (अग्रे) = पहले (तुभ्यम्) = तेरे लिये (पर्यवहन्) = प्राप्त कराते हैं। माता-पिता को अपनी कन्या को दूसरे घर में भेजते हुए मन में कुछ आशंका का होना स्वाभाविक ही है । वे प्रभु से कहते हैं कि हम तो इसे आपको ही सौंप रहे हैं, आपने ऐसी कृपा करना कि यह ठीक स्थान पर ही जाए। [२] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! हमने इस कन्या को आपको सौंप दिया है। (पुनः) = फिर आप ही अब इन कन्याओं को (पतिभ्यः) = योग्य पतियों के लिये (जायाः दाः) = पत्नी के रूप में दीजिये और ऐसी कृपा करिये कि यह (प्रजया सह) = प्रजा के साथ हो, उत्तम सन्ततिवाली हो। [३] यहाँ 'अग्ने' शब्द आचार्यों के लिये भी प्रयुक्त हुआ है। माता-पिता अपने सन्तानों के आचार्यों पर इस उत्तरदायित्व को डालते हैं कि 'हमने तो आपको सौंप दिया है। आप ही अब योग्य पतियों को सौंपने की व्यवस्था कीजिये'। इस व्यवस्था में आचार्य उन सन्तानों के गुण-दोषों को अधिक अच्छी तरह जानने के कारण अधिक ठीक सम्बन्ध करा पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- कन्याओं के विवाह सम्बन्ध आचार्यों के माध्यम से होने पर सम्बन्ध के अनौचित्य की आशंका नितान्त कम हो जाती है।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अग्ने) हे विवाहसंस्कारे प्रयुज्यमानाग्ने ! कन्यासम्बन्धिनो जनाः (अग्रे तुभ्यं सूर्यां परि-अवहन्) प्रथमं तुभ्यं विवाहसंस्कारकार्यार्थं वधूं परिवहन्ति-समर्पयन्ति (वहतुना सह) वोढ्रा पत्या सह (पुनः) पुनस्त्वम्-अग्ने ! (पतिभ्यः प्रजया सह जायां दाः) पत्ये-पतिपारिवारिकजनेभ्यो जननशक्त्या सह जायां सन्तानोत्पादनयोग्यां ददासि ॥३८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord of divine fire, Agni, parents bring Surya, the bright bride to you with her gifts and ornaments. O yajna fire, pray give back the bride to the husband alongwith her potential to bear children for the husband.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा कन्या प्रजननशक्तीने पूर्ण संतान उत्पन्न करण्यायोग्य असेल तेव्हा पित्याने कन्येचा विवाह करावा. पती व त्याच्या परिवारातील लोक व मित्र यांच्यासमोर समारोह करावा. ॥३८॥

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