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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 33
    ऋषिः - सूर्या सावित्री देवता - सूर्या छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    सु॒म॒ङ्ग॒लीरि॒यं व॒धूरि॒मां स॒मेत॒ पश्य॑त । सौभा॑ग्यमस्यै द॒त्त्वायाथास्तं॒ वि परे॑तन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽम॒ङ्ग॒लीः । इ॒यम् । व॒धूः । इ॒माम् । स॒म्ऽएत॑ । पश्य॑त । सौभा॑ग्यम् । अ॒स्यै॒ । द॒त्त्वाय॑ । अथ॑ । अस्त॑म् । वि । परा॑ । इ॒त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुमङ्गलीरियं वधूरिमां समेत पश्यत । सौभाग्यमस्यै दत्त्वायाथास्तं वि परेतन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽमङ्गलीः । इयम् । वधूः । इमाम् । सम्ऽएत । पश्यत । सौभाग्यम् । अस्यै । दत्त्वाय । अथ । अस्तम् । वि । परा । इतन ॥ १०.८५.३३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 33
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इयं वधूः सुमङ्गलीः) यह नवविवाहिता वधू शुभमङ्गलवाली है (इमां पश्यत समेत) हे इसके सम्बन्धी जनो तथा हितचिन्तको ! इसका दर्शन करो और सम्यक् आलिङ्गन करो (अस्यै सौभाग्यं दत्त्वाय) इसके लिए “सौभाग्य हो” यह आशीर्वाद देकर (अथ) पुनः (अस्तं विपरेतन) अपने-अपने घर को जाओ ॥३३।

    भावार्थ

    वधू घर में मङ्गल का सञ्चार करनेवाली है। सम्बन्धी और हितचिन्तक सौभाग्य का आशीर्वाद दें और स्नेह से मिलें ॥३३॥

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    विषय

    विवाह पर वधु के सौभाग्य आशीर्वाद की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (इयं वधूः सुमङ्गलीः) यह वधू मंगल चिन्हों से युक्त है। (सम् आ इत) आप लोग आइये। (अस्यै) इसको (सौभाग्यं) उत्तम सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद (दत्वाय) देकर (अथ) अनन्तर (अस्तं) गृह को (वि परेतन) जाइयेगा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥

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    विषय

    वधू का स्वागत

    पदार्थ

    [१] जब बरात लौटती है और घर पर पहुँचती है, उस समय सभी परिचित पड़ोसी वधू दर्शन के लिये उपस्थित होते हैं और वर सब से कहता है कि (इयं वधूः) = यह वधू (सुमंगली:) = उत्तम मंगल स्वभावोंवाली है समेत आप सब इकट्ठे होवें और (पश्यत) = इसे देखें। [२] आकर (अस्यै) = इसके लिये (सौभाग्यं दत्वाय) = सौभाग्य के आशीर्वाद को देकर अथ अब (अस्तम्) = अपने- अपने घरों को (विपरेतन) = वापिस जाइये। आपका आशीर्वाद इसके सौभाग्य के वर्धन को करनेवाला हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सब परिचित बन्धु पड़ोसी आकर नव वधू को सौभाग्य का आशीर्वाद दें।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इयं वधूः सुमङ्गलीः) एषा वधूर्नवविवाहिता शुभानि मङ्गलानि यस्यां तथा भूतास्ति “सुमङ्गलीः शोभनानि मङ्गलानि यासु ताः” [ऋ० १।११२।१३ दयानन्दः] (इमां पश्यत समेत) हे सम्बन्धिनो जनाः ! सखायश्च ! एतां पश्यत सम्यक् श्लिष्यत (अस्यै सौभाग्यं दत्त्वाय) अस्यै सौभाग्यमित्याशीर्दत्त्वा (अथ) अनन्तरं (अस्तं विपरेतन) स्वगृहं वियुज्य गच्छत ॥३३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Auspicious is this bride, gracious, please come, see her to wish her all good fortune in life, and having thus blessed her, you may please retire homeward.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    वधू घरात मंगल करणारी आहे. नातेवाईक व हितचिंतकांनी सौभाग्याचा आशीर्वाद द्यावा व स्नेहाने भेटावे. ॥३३॥

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