अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
सूक्त - सोम
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
सोमे॑नादि॒त्याब॒लिनः॒ सोमे॑न पृथि॒वी म॒ही। अथो॒ नक्ष॑त्राणामे॒षामु॒पस्थे॒ सोम॒ आहि॑तः॥
स्वर सहित पद पाठसोमे॑न । आ॒दि॒त्या: । ब॒लिन॑: । सोमे॑न । पृ॒थि॒वी । म॒ही । अथो॒ इति॑ । नक्ष॑त्राणाम् । ए॒षाम् । उ॒पऽस्थे॑ । सोम॑: । आऽहि॑त: ॥१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमेनादित्याबलिनः सोमेन पृथिवी मही। अथो नक्षत्राणामेषामुपस्थे सोम आहितः॥
स्वर रहित पद पाठसोमेन । आदित्या: । बलिन: । सोमेन । पृथिवी । मही । अथो इति । नक्षत्राणाम् । एषाम् । उपऽस्थे । सोम: । आऽहित: ॥१.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
विषय - मन्त्र १-५, प्रकाश करने योग्य और प्रकाशक के विषय काउपदेश।
पदार्थ -
(सोमेन) चन्द्रमा केसाथ (आदित्याः) सूर्य की किरणें (बलिनः) बलवान् [होती हैं] और (सोमेन) चन्द्रमा [के प्रकाश] के साथ (पृथिवी) पृथिवी (मही) बलवती अर्थात् पुष्ट [होती है]। (अथो)और भी (एषाम्) इन (नक्षत्राणाम्) चलनेवाले तारागणों के (उपस्थे) समीप में (सोमः)चन्द्रमा (आहितः) ठहराया गया है ॥२॥
भावार्थ - चन्द्रमा शीतलस्वभावहै, सूर्य की किरणें उसके ऊपर गिर कर शीतल हो जाती हैं, और जब वे चन्द्रमा सेउलटकर वायु से मिलकर पृथिवी पर पड़ती हैं, तब शीतलता के कारण पृथिवी के अन्न आदिपदार्थों को पुष्ट करती हैं। इसी प्रकार सूर्य और चन्द्रमा का प्रभाव नक्षत्रोंपर होता है ॥२॥
टिप्पणी -
२−(सोमेन) चन्द्रेण सह संयुज्य (आदित्याः) आदीप्यमानाः किरणाः (बलिनः) बलं कर्तुंशीला भवन्ति (सोमेन) चन्द्रप्रकाशेन सह (पृथिवी) (मही) बलवती।पुष्टा (अथो) अपि च (नक्षत्राणाम्) गतिशीलानां तारागणानाम् (एषाम्)दृश्यमानानाम् (उपस्थे) समीपे (सोमः) चन्द्रमाः (आहितः) स्थापितः ॥