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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 36
    सूक्त - आत्मा देवता - सोम छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    येन॑ महान॒घ्न्याज॒घन॒मश्वि॑ना॒ येन॑ वा॒ सुरा॑। येना॒क्षा अ॒भ्यषि॑च्यन्त॒ तेने॒मांवर्च॑सावतम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । म॒हा॒ऽन॒घ्न्या: । ज॒घन॑म् । अश्वि॑ना । येन॑ । वा॒ । सुरा॑ । येन॑ । अ॒क्षा: । अ॒भि॒ऽअसि॑च्यन्त । तेन॑ । इ॒माम् । वर्च॑सा । अ॒व॒त॒म् ॥१.३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन महानघ्न्याजघनमश्विना येन वा सुरा। येनाक्षा अभ्यषिच्यन्त तेनेमांवर्चसावतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । महाऽनघ्न्या: । जघनम् । अश्विना । येन । वा । सुरा । येन । अक्षा: । अभिऽअसिच्यन्त । तेन । इमाम् । वर्चसा । अवतम् ॥१.३६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 36

    पदार्थ -
    (येन) जिस [तेज] केकारण (महानघ्न्याः) अत्यन्त निर्दोष स्त्री के (जघनम्) पौरुष, (येन) जिस के कारण (सुरा) ऐश्वर्य [लक्ष्मी], (वा) और (येन) जिस करके (अक्षाः) सब व्यवहार (अभ्यषिच्यन्त) सींचे जाते हैं [बढ़ाये जाते हैं], (अश्विना) हे विद्या कोप्राप्त दोनों [स्त्री-पुरुष समूहो !] (तेन वर्चसा) उस तेज से (इमाम्) इस [वधू]को (अवतम्) शोभायमान करो ॥३६॥

    भावार्थ - सब स्त्री-पुरुष मिकरउपाय करें कि वधू बड़ी-बड़ी स्त्रियों के समान पौरुष, ऐश्वर्य और व्यवहार बढ़ाकरतेजस्विनी होवे ॥३६॥

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