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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 51
    सूक्त - आत्मा देवता - सोम छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    भग॑स्ते॒हस्त॑मग्रहीत्सवि॒ता हस्त॑मग्रहीत्। पत्नी॒ त्वम॑सि॒ धर्म॑णा॒हं गृ॒हप॑ति॒स्तव॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भग॑: । ते॒ । हस्त॑म् । अ॒ग्र॒ही॒त् । स॒वि॒ता । हस्त॑म् । अ॒ग्र॒ही॒त् । पत्नी॑ । त्वम् । अ॒सि॒ । धर्म॑णा । अ॒हम् । गृ॒हऽप॑ति: । तव॑ ॥१.५१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भगस्तेहस्तमग्रहीत्सविता हस्तमग्रहीत्। पत्नी त्वमसि धर्मणाहं गृहपतिस्तव॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भग: । ते । हस्तम् । अग्रहीत् । सविता । हस्तम् । अग्रहीत् । पत्नी । त्वम् । असि । धर्मणा । अहम् । गृहऽपति: । तव ॥१.५१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 51

    पदार्थ -
    (भगः) ऐश्वर्यवान् [परमात्मा] ने (ते) तेरा (हस्तम्) हाथ (अग्रहीत्) पकड़ा है [सहाय किया है], (सविता) सर्वोत्पादक जगदीश्वर ने (हस्तम्) हाथ (अग्रहीत्) पकड़ा है। (धर्मणा)धर्म से, (त्वम्) तू (पत्नी) [मेरी] पत्नी [पालन करनेवाली] (असि) है, (अहम्) मैं (तव) तेरा (गृहपतिः) गृहपति [घर का पालन करनेवाला हूँ] ॥५१॥

    भावार्थ - पति-पत्नी दृढ़प्रतिज्ञा करें कि परमेश्वर के अनुग्रह से हम दोनों मिले हैं, हम दोनों मिलकरगृहाश्रम में धर्ममार्ग पर चलेंगे और परस्पर सहाय करेंगे ॥५१॥

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