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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 45
    सूक्त - आत्मा देवता - बृहती गर्भा त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    याअकृ॑न्त॒न्नव॑य॒न्याश्च॑ तत्नि॒रे या दे॒वीरन्ताँ॑ अ॒भितोऽद॑दन्त। तास्त्वा॑ज॒रसे॒ सं व्य॑य॒न्त्वायु॑ष्मती॒दं परि॑ धत्स्व॒ वासः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या: । अकृ॑न्तन् । अव॑यन् । या: । च‍॒ । त॒त्नि॒रे । या: । दे॒वी: । अन्ता॑न् । अ॒भित॑: । अद॑दन्त । ता: । त्वा॒ । ज॒रसे॒ । सम् । व्य॒य॒न्तु॒ । आयु॑ष्मती । इ॒दम् । परि॑ । ध॒त्स्व॒ । वास॑: ॥१.४५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    याअकृन्तन्नवयन्याश्च तत्निरे या देवीरन्ताँ अभितोऽददन्त। तास्त्वाजरसे सं व्ययन्त्वायुष्मतीदं परि धत्स्व वासः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या: । अकृन्तन् । अवयन् । या: । च‍ । तत्निरे । या: । देवी: । अन्तान् । अभित: । अददन्त । ता: । त्वा । जरसे । सम् । व्ययन्तु । आयुष्मती । इदम् । परि । धत्स्व । वास: ॥१.४५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 45

    पदार्थ -
    (याः) जिन [स्त्रियों]ने (अकृन्तन्) काता है, (च) और (याः) जिन्होंने (तत्निरे) तन्तुओं को फैलाया है, और (अवयन्) बुना है, और (याः देवीः) जिन देवियों ने (अन्तान्) [वस्त्र के] आँचल (अभितः) सब प्रकार से (अददन्त) दिये हैं। [हे वधू !] (ताः) वे सब स्त्रियाँ (त्वा)तुझे (जरसे) बड़ाई के लिये (सं व्ययन्तु) वस्त्र पहिनावें, (आयुष्मती) बड़ीआयुवाली तू (इदं वासः) इस वस्त्र को (परि धत्स्व) धारण कर ॥४५॥

    भावार्थ - बड़ी-बड़ी गुणवतीस्त्रियाँ आदर करके सुन्दर-सुन्दर वस्त्र वधू को देकर पहिनावें और आशीर्वाददेवें कि वह प्रसन्न रहकर बड़ा यश प्राप्त करे ॥४५॥

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