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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 8
    सूक्त - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    स्तोमा॑आसन्प्रति॒धयः॑ कु॒रीरं॒ छन्द॑ ओप॒शः। सू॒र्याया॑ अ॒श्विना॑व॒राग्निरा॑सीत्पुरोग॒वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तोमा॑: । आ॒स॒न् । प्र॒ति॒ऽधय॑: । कु॒रीर॑म् । छन्द॑: । ओ॒प॒श: । सू॒र्याया॑: । अ॒श्विना॑ । व॒रा । अ॒ग्नि: । आ॒सी॒त् । पु॒र॒:ऽग॒व: ॥१.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तोमाआसन्प्रतिधयः कुरीरं छन्द ओपशः। सूर्याया अश्विनावराग्निरासीत्पुरोगवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्तोमा: । आसन् । प्रतिऽधय: । कुरीरम् । छन्द: । ओपश: । सूर्याया: । अश्विना । वरा । अग्नि: । आसीत् । पुर:ऽगव: ॥१.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (स्तोमाः) स्तुतियोग्य गुण (सूर्यायाः) प्रेरणा करनेवाली [वा सूर्य की चमक के समान तेजवाली]कन्या के (प्रतिधयः) वस्त्रों के अंचल [समान] (आसन्) हों, (कुरीरम्) कर्तव्यकर्म और (छन्दः) आनन्दप्रद वेद (ओपशः) मुकुट [समान हो] और (अग्निः) अग्नि [शारीरिक और बाहिरी अग्नि द्वारा स्वास्थ्य, शिल्प, यज्ञ आदि विधान] (पुरोगवः)अग्रगामी [पुरोहित समान] (आसीत्) हो, [जब कि] (अश्विना) विद्या को प्राप्त दोनों [वधू वर] (वरा) परस्पर चाहनेवाले [वा श्रेष्ठ गुणवाले] हों ॥८॥

    भावार्थ - जब कन्या ब्रह्मचर्यसे विद्या प्राप्त करके स्वास्थ्य आदि विधान में निपुण हो और जब वैसा ही वरब्रह्मचारी विद्वान् हो, तब दोनों परस्पर विवाह की कामना करें ॥८॥मन्त्र ८-१३कुछ भेद से ऋग्वेद में हैं−१०।८५।८-१३ ॥

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