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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 39
    सूक्त - आत्मा देवता - सोम छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    आस्यै॑ब्राह्म॒णाः स्नप॑नीर्हर॒न्त्ववी॑रघ्नी॒रुद॑ज॒न्त्वापः॑। अ॑र्य॒म्णो अ॒ग्निंपर्ये॑तु पूष॒न्प्रती॑क्षन्ते॒ श्वशु॑रो दे॒वर॑श्च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒स्यै॒ । ब्रा॒ह्म॒णा । स्नप॑नी: । ह॒र॒न्तु॒ । अवी॑रऽघ्नी: । उत् । अ॒ज॒न्तु॒ । आप॑: । अ॒र्य॒म्ण: । अ॒ग्निम् । परि॑ । ए॒तु॒ । पू॒ष॒न् । प्रति॑ । ई॒क्ष॒न्ते॒ । श्वशु॑र: । दे॒वर॑: । च॒ ॥१.३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आस्यैब्राह्मणाः स्नपनीर्हरन्त्ववीरघ्नीरुदजन्त्वापः। अर्यम्णो अग्निंपर्येतु पूषन्प्रतीक्षन्ते श्वशुरो देवरश्च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । अस्यै । ब्राह्मणा । स्नपनी: । हरन्तु । अवीरऽघ्नी: । उत् । अजन्तु । आप: । अर्यम्ण: । अग्निम् । परि । एतु । पूषन् । प्रति । ईक्षन्ते । श्वशुर: । देवर: । च ॥१.३९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 39

    पदार्थ -
    (अस्यै) इस [वधू] केलिये (ब्राह्मणाः) ब्राह्मण [विद्वान् लोग] (स्नपनीः) शुद्धिकारक सामग्रियों को (आ हरन्तु) लावें, (अवीरघ्नीः) वीरों को हितकारी (आपः) प्रजाएँ (उत्) उत्तमतासे (अजन्तु) प्राप्त होवें। (पूषन्) हे पुष्टिकारक [विद्वान् !] (अर्यम्णः)श्रेष्ठों के मान करनेवाले [पति] की (अग्निम्) अग्नि की [प्रत्येक पति-पत्नी] (परि एतु) परिक्रमा करे, (श्वशुरः) ससुर [पति का पिता] (च) और (देवरः) देवर लोग [पति के छोटे-बड़े भ्राता] (प्रति ईक्षन्ते) बाट देखते हैं ॥३९॥

    भावार्थ - वर के घर पहुँचकरवधू-वर विद्वानों की आज्ञानुसार शुद्ध जल आदि से स्नान करके अग्निहोत्रादि करकेयज्ञकुण्ड की परिक्रमा करें और सब कुटुम्बी लोग सन्मान से स्वागत करें ॥३९॥

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