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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 24
    सूक्त - चन्द्रमा देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    नवो॑नवो भवसि॒जाय॑मा॒नोऽह्नां॑ के॒तुरु॒षसा॑मे॒ष्यग्र॑म्। भा॒गं दे॒वेभ्यो॒ विद॑धास्या॒यन्प्र च॑न्द्रमस्तिरसे दी॒र्घमायुः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नव॑ऽनव: । भ॒व॒सि॒ । जाय॑मान:। अह्ना॑म् । के॒तु:। । उ॒षसा॑म् । ए॒षि॒ । अग्र॑म् । भा॒गम् । दे॒वेभ्य॑: । वि । द॒धा॒सि॒ । आ॒ऽयन् । प्र । च॒न्द्र॒म॒: । ति॒र॒से॒ । दी॒र्घम् । आयु॑: ॥१.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नवोनवो भवसिजायमानोऽह्नां केतुरुषसामेष्यग्रम्। भागं देवेभ्यो विदधास्यायन्प्र चन्द्रमस्तिरसे दीर्घमायुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नवऽनव: । भवसि । जायमान:। अह्नाम् । केतु:। । उषसाम् । एषि । अग्रम् । भागम् । देवेभ्य: । वि । दधासि । आऽयन् । प्र । चन्द्रम: । तिरसे । दीर्घम् । आयु: ॥१.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 24

    पदार्थ -
    (चन्द्रमः) हेचन्द्रमा ! तू [शुक्ल पक्ष में] (नवोनवः) नया-नया (जायमानः) प्रकट होता हुआ (भवसि) रहता है, और (अह्नाम्) दिनों का (केतुः) जतानेवाला तू (उषसाम्) उषाओं [प्रभात वेलाओं] के (अग्रम्) आगे (एषि) चलता है और (आयन्) आता हुआ तू (देवेभ्यः)उत्तम पदार्थों को (भागम्) सेवनीय उत्तम गुण (वि दधासि) विविध प्रकार देता है और (दीर्घम्) लम्बे (आयुः) जीवनकाल को (प्र) अच्छे प्रकार (तिरसे) पार लगाता है॥२४॥

    भावार्थ - चन्द्रमा शुक्लपक्षमें एक-एक कला बढ़कर नया-नया होता है, और दिनों अर्थात् प्रतिपदा आदि चान्द्रतिथियों को बनाता, और पृथिवी के पदार्थों में पुष्टि देकर प्राणियों का जीवनबढ़ाता है, इसी प्रकार स्त्री-पुरुष संसार में उपकार करके अपना जीवन सुफल करें॥२४॥

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