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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 59
    सूक्त - आत्मा देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    उद्य॑च्छध्व॒मप॒रक्षो॑ हनाथे॒मां नारीं॑ सुकृ॒ते द॑धात। धा॒ता वि॑प॒श्चित्पति॑मस्यै विवेद॒ भगो॒राजा॑ पु॒र ए॑तु प्रजा॒नन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । य॒च्छ॒ध्व॒म् । अप॑ । रक्ष॑: । ह॒ना॒थ॒ । इ॒माम् । नारी॑म् । सु॒ऽकृ॒ते । द॒धा॒त॒ । धा॒ता । वि॒प॒:ऽचित् । पति॑म् । अ॒स्यै । वि॒वे॒द॒ । भग॑: । राजा॑ । पु॒र: । ए॒तु॒ । प्र॒ऽजा॒नन् ॥१.५९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्यच्छध्वमपरक्षो हनाथेमां नारीं सुकृते दधात। धाता विपश्चित्पतिमस्यै विवेद भगोराजा पुर एतु प्रजानन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । यच्छध्वम् । अप । रक्ष: । हनाथ । इमाम् । नारीम् । सुऽकृते । दधात । धाता । विप:ऽचित् । पतिम् । अस्यै । विवेद । भग: । राजा । पुर: । एतु । प्रऽजानन् ॥१.५९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 59

    पदार्थ -
    [हे वीरो ! शस्त्रोंको] (उत् यच्छध्वम्) उठाओ, (रक्षः) राक्षस को (अप हनाथ) मार हटाओ, (इमां नारीम्)इस नारी [नर की पत्नी] को (सुकृते) सुकृत [पुण्य कर्म] में (दधात) धारण करो। (विपश्चित्) बुद्धिमान् (धाता) धारण करनेवाले [परमेश्वर] ने (अस्यै) इस [वधू] केलिये (पतिम्) पति (विवेद) प्राप्त कराया है, (प्रजानन्) पहिले से जाननेवाला (राजा) प्रकाशमान (भगः) ऐश्वर्यवान् [परमात्मा] (पुरः) आगे (एतु) प्राप्त होवे॥५९॥

    भावार्थ - धर्मात्मा वीर लोगप्रयत्न के साथ विघ्नों से पृथक् करके वधू-वर को धर्म में प्रवृत्त रक्खें, औरपरमात्मा का सदा ध्यान करें कि जिस ने कृपा करके विद्वान् पति-पत्नी को मिलायाहै, वही उनका सदा सहाय करे ॥५९॥

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