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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 33
    सूक्त - यमः देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त

    वन॑स्पते स्ती॒र्णमा सी॑द ब॒र्हिर॑ग्निष्टो॒मैः संमि॑तो दे॒वता॑भिः। त्वष्ट्रे॑व रू॒पं सुकृ॑तं॒ स्वधि॑त्यै॒ना ए॒हाः परि॒ पात्रे॑ ददृश्राम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वन॑स्पते । स्ती॒र्णम् । आ । सी॒द॒ । ब॒र्हि: । अ॒ग्नि॒ऽस्तो॒मै: । सम्ऽमि॑त: । दे॒वता॑भि: । त्वष्ट्रा॑ऽइव । रू॒पम् । सुऽकृ॑तम् । स्वऽधि॑त्या । ए॒ना । ए॒हा: । परि॑ । पात्रे॑ । द॒ह॒श्रा॒म् ॥३.३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वनस्पते स्तीर्णमा सीद बर्हिरग्निष्टोमैः संमितो देवताभिः। त्वष्ट्रेव रूपं सुकृतं स्वधित्यैना एहाः परि पात्रे ददृश्राम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वनस्पते । स्तीर्णम् । आ । सीद । बर्हि: । अग्निऽस्तोमै: । सम्ऽमित: । देवताभि: । त्वष्ट्राऽइव । रूपम् । सुऽकृतम् । स्वऽधित्या । एना । एहा: । परि । पात्रे । दहश्राम् ॥३.३३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 33

    भावार्थ -
    हे (वनस्पते) महावृत के समान सबको अपनी छाया में आश्रय देने हारे राजन् ! तू (स्तीर्णम् बर्हिः आसीद) इस आसन के समान विस्तृत बर्हि=रूप प्रजाओं पर (आसीद) विराजमान हो। और (अग्निष्टौमैः) अग्निस्तोम नामक अग्नि राजा के सद्गुणों के बतलाने वाले वेद के सूक्तों और (देवताभिः) देव, विद्वानों के द्वारा (संमितः) उत्तम रीति से पूजित हो। जिस प्रकार (त्वष्ट्रा इव) उत्तम शिल्पी अपनी (स्वधित्या) स्वधिति बसौले से लकड़ी को गढ़ कर उसका (रूपं सुकृतम्) उत्तम रूप बना देता है उसी प्रकार इस राजा रूप वनस्पति का भी (त्वष्ट्रा) परमात्मा ने अपने (स्व-धित्या) स्व = ऐश्वर्य के धारण सामर्थ्य से उसका (रूपं सुकृतम्) रूप, कान्ति तेज उत्तम बनाया है। (एना) इसके साथ (एहाः) सहोद्योग करने वाले (पात्रे) इस सहोद्योगी शासक अपने पालन करने वाले इस राजा में ही आश्रित होकर उसके (परि ददृश्राम्) चारों ओर विराजते दिखाई देते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - यम ऋषिः। मन्त्रोक्तः स्वर्गौदनोऽग्निर्देवता। १, ४२, ४३, ४७ भुरिजः, ८, १२, २१, २२, २४ जगत्यः १३ [१] त्रिष्टुप, १७ स्वराट्, आर्षी पंक्तिः, ३.४ विराड्गर्भा पंक्तिः, ३९ अनुष्टुद्गर्भा पंक्तिः, ४४ परावृहती, ५५-६० व्यवसाना सप्तपदाऽतिजागतशाकरातिशाकरधार्त्यगर्भातिधृतयः [ ५५, ५७-६० कृतयः, ५६ विराट् कृतिः ]। षष्ट्यृचं सूक्तम्॥

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