Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 42
    सूक्त - यमः देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त

    नि॒धिं नि॑धि॒पा अ॒भ्येनमिच्छा॒दनी॑श्वरा अ॒भितः॑ सन्तु॒ ये॒न्ये। अ॒स्माभि॑र्द॒त्तो निहि॑तः स्व॒र्गस्त्रि॒भिः काण्डै॒स्त्रीन्त्स्व॒र्गान॑रुक्षत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि॒ऽधिम् । नि॒धि॒ऽपा: । अ॒भि । ए॒न॒म् । इ॒च्छा॒त् । अनी॑श्वरा: । अ॒भित॑: । स॒न्तु॒ । ये । अ॒न्ये । अ॒स्माभि॑: । द॒त्त: । निऽहि॑त: । स्व॒:ऽग: । त्रि॒ऽभि: । काण्डै॑: । त्रीन् । स्व॒:ऽगान् । अ॒रु॒क्ष॒त् ॥३.४२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    निधिं निधिपा अभ्येनमिच्छादनीश्वरा अभितः सन्तु येन्ये। अस्माभिर्दत्तो निहितः स्वर्गस्त्रिभिः काण्डैस्त्रीन्त्स्वर्गानरुक्षत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    निऽधिम् । निधिऽपा: । अभि । एनम् । इच्छात् । अनीश्वरा: । अभित: । सन्तु । ये । अन्ये । अस्माभि: । दत्त: । निऽहित: । स्व:ऽग: । त्रिऽभि: । काण्डै: । त्रीन् । स्व:ऽगान् । अरुक्षत् ॥३.४२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 42

    भावार्थ -
    (निधिपाः) निधि—पृथ्वी के राज्य को पालन करने वाला राजा (एनं) उस साम्राज्य रूप (निधिम्) पृथ्वी के खजाने को (अभि इच्छात्) स्वयं प्राप्त करे। और (ये) जो (अन्ये) दूसरे (अनीश्वराः) ऐश्वर्य से हीन निर्बल पुरुष हैं वे (अभितः) उस राजा के चारों ओर उस के आश्रित होकर (सन्तु) रहें। (अस्माभिः) हम लोग स्वयं (स्वर्गः) इस स्वर्ग को (दत्तः) उस राजा को प्रदान करते और (निहितः) स्वयं बनाते हैं। यह राजा (त्रिभिः काण्डैः) तीन प्रकार की व्यवस्थाओं से (त्रीन् स्वर्गान्) तीनों सुखमय लोकों के (आरुक्षत्) ऊपर चढ़े, उन सब पर वश करे, शासन करे। बालक, युवक और वृद्ध इन तीनों के लिये तीन प्रकार की व्यवस्थाएं हो। अथवा तीन काण्ड तीन वेद हैं। अथवा उत्तम, मध्यम, अधम भेद से तीन अथवा त्रिवर्णों की तीन व्यवस्थाएं। धर्म, अर्थ, काम इनकी साधना की तीन व्यवस्थाएं। इसी प्रकार उनके तीन क्षेत्र तीन स्वर्ग हैं। आध्यात्मिक, गृहस्थ और राष्ट्र ये तीन स्वर्ग हैं। राजा सब का शासन अपने हाथ में रखखे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - यम ऋषिः। मन्त्रोक्तः स्वर्गौदनोऽग्निर्देवता। १, ४२, ४३, ४७ भुरिजः, ८, १२, २१, २२, २४ जगत्यः १३ [१] त्रिष्टुप, १७ स्वराट्, आर्षी पंक्तिः, ३.४ विराड्गर्भा पंक्तिः, ३९ अनुष्टुद्गर्भा पंक्तिः, ४४ परावृहती, ५५-६० व्यवसाना सप्तपदाऽतिजागतशाकरातिशाकरधार्त्यगर्भातिधृतयः [ ५५, ५७-६० कृतयः, ५६ विराट् कृतिः ]। षष्ट्यृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top