अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 14
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - आसुरी गायत्री
सूक्तम् - ओदन सूक्त
ऋ॒चा कु॒म्भ्यधि॑हि॒तार्त्वि॑ज्येन॒ प्रेषि॑ता ॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒चा । कु॒म्भी । अधि॑ऽहिता । आर्त्वि॑ज्येन । प्रऽइ॑षिता ॥३.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋचा कुम्भ्यधिहितार्त्विज्येन प्रेषिता ॥
स्वर रहित पद पाठऋचा । कुम्भी । अधिऽहिता । आर्त्विज्येन । प्रऽइषिता ॥३.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 14
भाषार्थ -
(कुम्भी) ओदन के पाक के लिए हण्डिया (ऋचा) ऋग्वेद द्वारा (अधिहिता) अग्नि पर स्थापित की है, (आर्त्विज्येन), अध्वर्यु-ऋत्विक् सम्बन्धि कर्म के प्रतिपादक यजुर्वेद द्वारा (प्रेषिता) अग्नि के प्रति प्रेषित की गई है, भेजी गई है ॥१४॥
टिप्पणी -
[मन्त्र में ओदन-परिपाक के ४ प्रक्रमों का वर्णन हुआ है और इन प्रक्रमों को चतुर्वेदों में प्रोक्त विधि द्वारा, या चतुर्वेदों के तत्सम्बन्धी मन्त्रों का उच्चारण कर परिपाक करने का विधान मन्त्र १४, १५ में हुआ है। प्रत्येक शुभकर्म, मन्त्रोच्चारण पूर्वक, तथा वेदोक्त-विधि द्वारा करने की प्रेरणा, इन दो मन्त्रों द्वारा हुई है। यह वर्णन पाकशाला सम्बन्धी ओदन के सम्बन्ध में हुआ है। परमेश्वरोदन के सम्बन्ध में, ज्ञानाग्नि पर परमेश्वरीय भावनाओं का परिपाक करना चाहिये, और वह परिपाक वेदों के प्रतिपादन के अनुसार होना चाहिये। या चारों वेदों के विषयों अर्थात् ज्ञान, कर्म, उपासना, तथा विज्ञान पूर्वक होना चाहिये। परमेश्वरोदन के परिपक्व करने के लिए कुम्भी है शरीर, तथा शरीरगत इन्द्रियां, मन, बुद्धि और आत्मा]