अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 25
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - ओदन सूक्त
याव॑द्दा॒ताभि॑मन॒स्येत॒ तन्नाति॑ वदेत् ॥
स्वर सहित पद पाठयाव॑त् । दा॒ता । अ॒भि॒ऽम॒न॒स्येत॑ । तत् । न । अति॑ । व॒दे॒त् ॥३.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
यावद्दाताभिमनस्येत तन्नाति वदेत् ॥
स्वर रहित पद पाठयावत् । दाता । अभिऽमनस्येत । तत् । न । अति । वदेत् ॥३.२५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 25
भाषार्थ -
(दाता) दाता (यावत्) जितना (अभिमनस्येत) देने का मन करे, (तत् न अति वदेत्) उस से अधिक के लिये न कहे।
टिप्पणी -
[मन्त्र २४, २५ में खाद्य ओदन के सम्बन्ध में यह भी उपदेश दिया है कि दाता जितना देना चाहे उस से अधिक न मांगे। यदि ओदन, विना दाल-सब्जी के, दाता ने दिये हैं, तो उस से इन उपसेचनों की मांग न करे। यह उपदेश धनादि के दान के सम्बन्ध में भी समझना चाहिये]।