अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 27
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - साम्नी गायत्री
सूक्तम् - ओदन सूक्त
त्वमो॑द॒नं प्राशी३स्त्वामो॑द॒ना३ इति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । ओ॒द॒नम् । प्र । आ॑शी३: । त्वाम् । ओ॒द॒ना३: । इति॑ ॥३.२७॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमोदनं प्राशी३स्त्वामोदना३ इति ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । ओदनम् । प्र । आशी३: । त्वाम् । ओदना३: । इति ॥३.२७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 27
भाषार्थ -
(त्वम्) तूने (ओदनम् प्राशीः) ओदन का प्राशन किया है, या (त्वाम्) तेरा (ओदनः इति) ओदन ने प्राशन किया है।
टिप्पणी -
[जगत् का भोग करने वाला जगत् का भोग नहीं करता, अपितु जगत् ही उस भोक्ता का भोग कर रहा होता है। "भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः" –की उक्ति का समर्थन मन्त्र २७ द्वारा हुआ है]।