अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 17
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ओदन सूक्त
ऋ॒तवः॑ प॒क्तार॑ आर्त॒वाः समि॑न्धते ॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒तव॑: । प॒क्तार॑: । आ॒र्त॒वा: । सम् । इ॒न्ध॒ते॒ ॥३.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋतवः पक्तार आर्तवाः समिन्धते ॥
स्वर रहित पद पाठऋतव: । पक्तार: । आर्तवा: । सम् । इन्धते ॥३.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 17
भाषार्थ -
(ऋतवः) ऋतुएं हैं (पक्तार:) ओदन के उपादान भूत व्रीहि को पकाने वालीं, (आर्तवा) तथा ऋतु-ऋतु में प्राप्त भिन्न-भिन्न वृक्षों के भिन्न भिन्न काष्ठ (समिन्धते) अग्नि को प्रदीप्त करते हैं।
टिप्पणी -
[परमेश्वर पक्ष में भिन्न-भिन्न ऋतु काल तथा ऋतु कालों में प्रतीयमान परमेश्वरीय भिन्न-भिन्न कृतियां परमेश्वर सम्बन्धी भावनाओं को प्रदीप्त करती हैं, और खेतों में व्रीहि को ऋतु काल पकाते हैं।]