अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 30
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - याजुषी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ओदन सूक्त
नैवाहमो॑द॒नं न मामो॑द॒नः ॥
स्वर सहित पद पाठन । ए॒व । अ॒हम् । ओ॒द॒नम् । न । माम् । ओ॒द॒न: ॥३.३०॥
स्वर रहित मन्त्र
नैवाहमोदनं न मामोदनः ॥
स्वर रहित पद पाठन । एव । अहम् । ओदनम् । न । माम् । ओदन: ॥३.३०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 30
भाषार्थ -
(न एव) न ही (अहम्) मैंने (ओदनम्) ओदन का प्राशन किया, (न) और न (माम्) मेरा (ओदनः) ओदन ने प्राशन किया।
टिप्पणी -
[मन्त्र २६ में "ब्रह्मवादिनः पद" द्वारा प्रश्न किये गये हैं, सामान्य व्यक्तियों द्वारा नहीं। इसलिये प्रश्नों में आध्यात्मिकता की भावना प्रतीत होती है। इन प्रश्नों के उत्तर भी आध्यात्मिक भावनाओं का पुट लिये हुए हैं। उत्तरदाता अपने स्वरूप को अनध्यात्म और अध्यात्म,– दोनों रूपों में देखता है। अनध्यात्म रूप है शरीर, और अध्यात्म रूप है जीवात्मा का आत्मरूप। उत्तरदाता का अभिप्राय है कि "मैं आत्मा" ने प्राकृतिक ओदन का प्राशन नहीं किया, न प्राकृतिक-ओदन ने मेरे स्वरूप का प्राशन किया है। तो किस ने किस का प्राशन किया, इसका उत्तर ३१ में है]। यथा—