अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 9
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ओदन सूक्त
खलः॒ पात्रं॒ स्फ्यावंसा॑वी॒षे अ॑नू॒क्ये ॥
स्वर सहित पद पाठखल॑: । पात्र॑म् । स्फ्यौ । अंसौ॑ । इ॒षे इति॑ । अ॒नू॒क्ये॒३॒ इति॑ ॥३.९॥
स्वर रहित मन्त्र
खलः पात्रं स्फ्यावंसावीषे अनूक्ये ॥
स्वर रहित पद पाठखल: । पात्रम् । स्फ्यौ । अंसौ । इषे इति । अनूक्ये३ इति ॥३.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(खलः) खलियान (पात्रम्) पात्र स्थानी है, (अंसौ) दो कन्धे (स्फ्यौ) शकट के प्रवृद्ध अगले भाग के दो किनारे स्थानी हैं, (अनूक्ये) कन्धों के साथ सम्बद्ध दो बाहुएं (ईषे) शकट के अगले भाग में लगे दो दण्डे स्थानी हैं।
टिप्पणी -
[खलः= व्रीहि के कटे-पौधों के पीड़न का स्थान। पात्रम्= शकट का वह भाग जिस में कटे-व्रीहि-पौधों को डालकर खलियान तक लाया जाता है। इसे शकट का धड़ या उपस्थ भी कह सकते हैं, उपस्थ अर्थात् जहां बैठा जाता है। जैसे कि रथोपस्थ “रथोपस्थ उपाविशत्” (गीता)। तथा उपस्थः The middle part in general (आप्टे)। स्फ्यौ= स्फायी वृद्धौ, धान्याधारस्य शकटस्यावयवौ (सायण)। अनु उच्यते समवेयते संधीयत इति अनुक्या (सायण), उच समवाये। ईषे= शकट के दो पार्श्वों से आगे बढ़े हुए दो दण्डे, जिन के मध्य में जोतने के लिए बैल खड़ा किया जाता है। "अनुक्या" के अर्थ भाष्यकारों ने अथर्ववेद में भिन्न-भिन्न किये हैं। परन्तु मन्त्र ९ में अनूक्ये का अर्थ दो बाहुएं अधिक उपपन्न होता है। "स्फ्य" यद्यपि याज्ञिक उपकरण होता है जो कि खङ्गाकृति का होता है, परन्तु ओदन प्रकरण में स्फ्य का याज्ञिक अर्थ उपपन्न नहीं प्रतीत होता। खलः असौ, अनुक्ये,- ये परमेश्वरीय पदार्थ हैं। स्पयौ, पात्रम्, ईषे,-ये मनुष्यरचित हैं। इन में भी प्रतिरूपता दर्शाई है। कन्धों से ऊर्ध्वीकृत दो बाहुएं, शकट के दो ईषारूप दण्ड हैं, और दो बाहुओं में स्थित सिर, दो ईषाओं के मध्य स्थित बैलरूप है। इस प्रकार अनूक्ये का अर्थ, ईषा के अर्थों के साथ समन्वित प्रतीत होता है।]