अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 16
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - आसुरी बृहती
सूक्तम् - ओदन सूक्त
बृ॒हदा॒यव॑नं रथन्त॒रं दर्विः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठबृ॒हत् । आ॒ऽयव॑नम् । र॒थ॒म्ऽत॒रम् । दर्वि॑: ॥३.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहदायवनं रथन्तरं दर्विः ॥
स्वर रहित पद पाठबृहत् । आऽयवनम् । रथम्ऽतरम् । दर्वि: ॥३.१६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 16
भाषार्थ -
(बृहत्) बृहत् नामक सामगान है (आयवनम्) उदक में डाले गए तण्डुलों को मिश्रित करने का उपकरण (रथन्तरम्) रथन्तर नामक सामगान है (दर्विः) ओदन के उद्धरण का उपकरण।
टिप्पणी -
[परमेश्वर रूपी ओदन को बृहत् सामगान द्वारा निज जीवनीय रस-रक्त में मिश्रित कर, उपासना पूर्वक उसे अपने रस-रक्त आदि अङ्गों, तथा इन्द्रियादि में भावित कर, रथन्तर सामगानपूर्वक उपासना से उत्थान करने का आदेश मन्त्र द्वारा हुआ है]।