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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 55
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - ओदन सूक्त

    न च॑ प्रा॒णं रु॒णद्धि॑ सर्वज्या॒निं जी॑यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । च॒ । प्रा॒णम् । रु॒णध्दि॑ । स॒र्व॒ऽज्या॒निम् । जी॒य॒ते॒ ॥५.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न च प्राणं रुणद्धि सर्वज्यानिं जीयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । च । प्राणम् । रुणध्दि । सर्वऽज्यानिम् । जीयते ॥५.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 55

    भाषार्थ -
    (च) और (न) न केवल (प्राणम्, रुणद्धि) जीवन में रुकावट ही डालता है, अपितु (सर्वज्यानि जीयते) समग्र जीवन को हानि पहुंचाता है।

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