अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 29
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - भुरिक्साम्नी बृहती
सूक्तम् - ओदन सूक्त
प्र॒त्यञ्चं॑ चैनं॒ प्राशी॑रपा॒नास्त्वा॑ हास्य॒न्तीत्ये॑नमाह ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒त्यञ्च॑म् । च॒ । ए॒न॒म् । प्र॒ऽआशी॑: । अ॒पा॒ना: । त्वा॒ । हा॒स्य॒न्ति॒ । इति॑ । ए॒न॒म् । आ॒ह॒ ॥३.२९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रत्यञ्चं चैनं प्राशीरपानास्त्वा हास्यन्तीत्येनमाह ॥
स्वर रहित पद पाठप्रत्यञ्चम् । च । एनम् । प्रऽआशी: । अपाना: । त्वा । हास्यन्ति । इति । एनम् । आह ॥३.२९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 29
भाषार्थ -
(प्रत्यञ्चम्, च, एनम्) यदि इस प्रत्यक्-ओदन का (प्राशीः) तूने प्राशन किया है तो (अपानाः, त्वा, हास्यन्ति) अपान तुझे छोड़ जायेंगे, (इति, एनम्, आह) इस प्रकार इस आध्यात्मिक-भोक्ता को कहे।
टिप्पणी -
[प्रत्यञ्च= प्रत्यक्-ओदन, परमेश्वर रूपी ओदन, जोकि आध्यात्मिक जीवन के लिये ओदन रूप है। कहा भी है "अहमन्नम्, अहमन्नादः"। परमेश्वर सम्बन्धी कथन है, परमेश्वर कहता है कि "मैं अन्न हूं" और "अन्नाद भी हूं"। आध्यात्मिक जीवन के लिये परमेश्वर अन्न [ओदन] है, और भोगियों तथा प्रलयकाल में सृष्टि के लिये वह अन्नाद हैं। यथा “यस्य ब्रह्म च क्षत्रं चोभे भक्त ओदनः। मृत्युर्यस्योपसेचनं क इत्त्था वेद यत्र सः"॥ इस उद्धरण में ब्रह्म और क्षत्र को परमेश्वर का ओदन तथा मृत्यु को उपसेचन अर्थात् ओदन का व्यञ्जन कहा है। अतः परमेश्वर अन्नाद भी है। परमेश्वर के भजन और उपासना में अधिक लीन रहने, और खान-पान तथा शारीरिक स्वास्थ्य से लापरवाह हो जाने पर अपान वायु विकृत हो जाती है, अपान वायु का यथोचितरूप में अपसरण नहीं होता। यह अपान का त्यागा जाना है।]