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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 28
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - भुरिगार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    तऽआय॑जन्त॒ द्रवि॑ण॒ꣳ सम॑स्मा॒ऽऋष॑यः॒ पूर्वे॑ जरि॒तारो॒ न भू॒ना। अ॒सूर्त्ते॒ सूर्त्ते॒ रज॑सि निष॒त्ते ये भू॒तानि॑ स॒मकृ॒॑ण्वन्नि॒मानि॑॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते। आ। अ॒य॒ज॒न्त॒। द्रवि॑णम्। सम्। अ॒स्मै॒। ऋष॑यः। पूर्वे॑। ज॒रि॒तारः॑। न। भू॒ना। अ॒सूर्त्ते॑। सूर्त्ते॑। रज॑सि। नि॒ष॒त्ते। नि॒स॒त्त इति॑ निऽस॒त्ते। ये। भू॒तानि॑। स॒मकृ॑ण्व॒न्निति॑ स॒म्ऽअकृ॑ण्वन्। इमानि॑ ॥२८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तऽआयजन्त द्रविणँ समस्माऽऋषयः पूर्वे जरितारो न भूना । असूर्ते सूर्ते रजसि निषत्ते ये भूतानि समकृण्वन्निमानि् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ते। आ। अयजन्त। द्रविणम्। सम्। अस्मै। ऋषयः। पूर्वे। जरितारः। न। भूना। असूर्त्ते। सूर्त्ते। रजसि। निषत्ते। निसत्त इति निऽसत्ते। ये। भूतानि। समकृण्वन्निति सम्ऽअकृण्वन्। इमानि॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 28
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    भावार्थ -
    राजा के पक्ष में - ( ते ऋषयः ) वे राजनीति के मन्त्रद्रष्टा लोग, मुख्य महामात्य लोग ( अस्मै ) इस राष्ट्रवासी प्रजाजन को ( पूर्वे जरितारः न ) अपने से पूर्व के विद्वान् नीति शास्त्र के प्रवक्ताओं के समान ही ( भूना ) बहुत अधिक ( द्रविणम् ) धन ऐश्वर्य ( सम् आयजन्त ) प्रदान करते हैं। और ( ये ) जो ( असूर्त्ते ) अप्रत्यक्ष,परोक्ष अर्थात् दूर के और ( सूर्त्ते ) प्रत्यक्ष, समीप के ( निषत्ते ) अपने अधीन स्थिरता से प्राप्त ( रजसि ) प्रदेश में ( इमानि भूतानि ) इन समस्त प्रजास्थ प्राणियों को ( सम् आकृण्वन् ) उत्तम रीति से संस्कृत करते, शिक्षित करते एवं सुसभ्य बनाने का यत्न करते हैं । राजा के मन्त्रद्रष्टा विद्वान् अपने अधीन दूर समीप सभी देशों की प्रजाओं को शिक्षित सभ्य बनाने का उद्योग करें । ईश्वर के पक्ष में - ( ते ऋषयः ) वे पूर्व के ऋषि, प्रकृति की सातों विकार आदि महान् शक्तियां ( जरितारः ) विद्वान् उपदेशकों के समान (अस्मै ) इस जीव सर्ग को ( भूना द्रविणं आयजन्त ) बहुत २ ऐश्वर्य प्रदान करते हैं अर्थात् पांचों भूत, अहंकार और महत्तत्व प्राणादि पांच, सूत्रात्मा और धनञ्जय ये सातों जीवों को बहुत विभूति प्रदान करते हैं । प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रजोगुण में विराजमान् प्राणियों को ये ही विशेष २ रूप से उत्पन्न करते हैं ।

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