Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 33
    ऋषिः - अप्रतिरथ ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    0

    आ॒शुः शिशा॑नो वृष॒भो न भी॒मो घ॑नाघ॒नः क्षोभ॑णश्चर्षणी॒नाम्। सं॒क्रन्द॑नोऽनिमि॒षऽए॑कवी॒रः श॒तꣳ सेना॑ऽअजयत् सा॒कमिन्द्रः॑॥३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒शुः। शिशा॑नः। वृ॒ष॒भः। न। भी॒मः। घ॒ना॒घ॒नः। क्षोभ॑णः। च॒र्ष॒णी॒नाम्। सं॒क्रन्द॑न॒ इति॑ स॒म्ऽक्रन्द॑नः। अ॒नि॒मि॒ष इत्य॑निऽमिषः। ए॒क॒वी॒र इत्ये॑कऽवी॒रः। श॒तम्। सेनाः॑। अ॒ज॒य॒त्। सा॒कम्। इन्द्रः॑ ॥३३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आशुः शिशानो वृषभो न भीमो घनाघनः क्षोभणश्चर्षणीनाम् । सङ्क्रन्दनो निमिषऽएकवीरः शतँ सेनाऽअजयत्साकमिन्द्रः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आशुः। शिशानः। वृषभः। न। भीमः। घनाघनः। क्षोभणः। चर्षणीनाम्। संक्रन्दन इति सम्ऽक्रन्दनः। अनिमिष इत्यनिऽमिषः। एकवीर इत्येकऽवीरः। शतम्। सेनाः। अजयत्। साकम्। इन्द्रः॥३३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 33
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    सेनापति रूप से इन्द्र का वर्णन । ( आशुः ) अति वेगवान्, शीघ्रगामी, बड़े वेग से शत्रु पर आक्रमण करने वाला ( शिशानः ) अपने हथियारों को खूब तीक्ष्ण करके रखने वाला अथवा ( शिशान: )शत्रु सेनाओं को काटता फाटता, ( वृषभः न भीम: ) मदमत्त वृषभ के समान भयंकार अथवा मेघ के समान शत्रुओं पर शर वर्षा करने वाला होकर अति भयंकर ( घनाघनः ) शत्रुओं को निरन्तर या वार वार हनन करने वाला, अथवा मारो मारो इस प्रकार सेनाओं को आज्ञा देने वाला, ( चर्षणीनानम् क्षोभण: ) समस्त मनुष्यों को विक्षुब्ध कर देने वाला, ( संक्रन्दनः ) शत्रुओं को अच्छी प्रकार रुलाने या ललकारने वाला, ( अनिमिषः ) कभी न झपकन वाला, सदा सावधान एवं निर्भय, प्रमाद रहित, ( एक वीरः ) एक मात्र वीर्यवान् शूरवीर ( इन्द्र: ) शत्रुओं का विदारण करने में समर्थ पुरुष ही ( शतं सेनाः ) सैकड़ों नायकों सहित दलों, या सेनाओं को ( साकम् ) एकही साथ ( अजयत् ) विजय करता है। जो पुरुष ऐसा शूरवीर हो वही सेनापति इन्द्र पद पर विराजे । शत० ९ । २ । ३ । ६ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ४४ अप्रतिरथ ऐन्द्र ऋषिः । इन्द्रो देवता | त्रिष्टुभः । अप्रतिरथं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top