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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 27
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    1

    यो नः॑ पि॒ता ज॑नि॒ता यो वि॑धा॒ता धामा॑नि॒ वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑। यो दे॒वानां॑ नाम॒धाऽएक॑ऽए॒व तꣳ स॑म्प्र॒श्नं भुव॑ना यन्त्य॒न्या॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। नः॒। पि॒ता। ज॒नि॒ता। यः। वि॒धा॒तेति॑ विऽधा॒ता। धामा॑नि। वेद॑। भुव॑नानि। विश्वा॑। यः। दे॒वाना॑म्। ना॒म॒धा इति॑ नाम॒ऽधाः। एकः॑। ए॒व। तम्। स॒म्प्र॒श्नमिति॑ सम्ऽप्र॒श्नम्। भुव॑ना। य॒न्ति॒। अ॒न्या ॥२७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो नः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा । यो देवानान्नामधाऽएक एव तँ सम्प्रश्नम्भुवना यन्त्यन्या ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। नः। पिता। जनिता। यः। विधातेति विऽधाता। धामानि। वेद। भुवनानि। विश्वा। यः। देवानाम्। नामधा इति नामऽधाः। एकः। एव। तम्। सम्प्रश्नमिति सम्ऽप्रश्नम्। भुवना। यन्ति। अन्या॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 27
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    भावार्थ -
    राजा के पक्ष में - ( यः ) जो राजा ( नः पिता ) हमारा पालक है ( जनिता ) सब राष्ट्र के कार्यों का प्रकट करने वाला, या उत्पादक पिता के समान हमारी स्थिति का कारण, ( यः विधाता ) जो विशेष नियम व्यवस्थाओं का कर्त्ता धर्त्ता होकर ( विश्वा भुवनानि ) समस्त लोकों को और ( धामानि ) धारक सामर्थ्यों, तेजों और अधिकार पदों को ( वेद ) जनता और प्राप्त करता है । ( यः ) जो ( देवानाम् ) सब विद्वान् शासकों या अधीन विजिगीषु नायकों के ( नामधा ) नामों का स्वयं धारण करने वाला ( एकः एव ) एक ही है ( तम् ) उस ( सम्प्रश्नम् ) सब के प्रश्न करने योग्य अर्थात् आज्ञा प्राप्त करने योग्य को आश्रय करके ( अन्या भुवना यन्ति ) और सब लोग और राष्ट्र के अंग विभाग चल रहे हैं। सभी अधीन लोग राजा से पूछ कर ही काम करते हैं इस लिये राजा 'सम्प्रश्न' है । ईश्वर के पक्ष में - जो हमारा पालक, उत्पादक, विशेष धारक पोषक, है। जो समस्त भुवनों, लोकों और ( धामानि ) तेजों और विश्व के धारक सामथ्यों को प्राप्त कर रहा है । जो समस्त ( देवानां ) देवों, दिव्य पदार्थों के नामों को स्वयं धारण करता है । अर्थात् सूर्य, चन्द्र आदि भी जिस के नाम हैं वह ( एक एव ) द्वितीय ही है (तम् सम्प्रश्नं ) उस सम्यग् रीति से सभी से जिज्ञासा करने योग्य परमपद का आश्रय करके ( अन्या भुवना ) और सब लोक ( यन्ति ) गति करते हैं । सभी परमेश्वर के विषय में तर्क वितर्क जिज्ञासा करते हैं इसलिये वह 'सम्प्रश्न' हैं। अध्यात्म में - वह आत्मा ( नः ) हम प्राणों का पालक धारक हैं, वह सब के ( धामानि ) तेजों को धारण करता है। सब ( देवानां ) प्राणों का नाम या स्वरूप वह स्वयं धारण करता है। वह सर्व जिज्ञास्य है उसके आश्रय पर ( भुवना ) उससे उत्पन्न समस्त प्राण चेष्टा कर रहे हैं ।

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