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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 20
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - स्वराडार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    किस्वि॒द्वनं॒ कऽउ॒ स वृ॒क्षऽआ॑स॒ यतो॒ द्यावा॑पृथि॒वी नि॑ष्टत॒क्षुः। मनी॑षिणो॒ मन॑सा पृ॒च्छतेदु॒ तद्यद॒ध्यति॑ष्ठ॒द् भुव॑नानि धा॒रय॑न्॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    किम्। स्वि॒त्। वन॑म्। कः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सः। वृ॒क्षः। आ॒स॒। यतः॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॒ द्यावा॑पृथि॒वी। नि॒ष्ट॒त॒क्षुः। नि॒स्त॒त॒क्षुरिति॑ निःऽतत॒क्षुः। मनी॑षिणः। मन॑सा। पृ॒च्छत॑। इत्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। तत्। यत्। अ॒ध्यति॑ष्ठ॒दित्य॑धि॒ऽअति॑ष्ठत्। भुव॑नानि। धा॒रय॑न् ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    किँ स्विद्वनङ्कऽउ स वृक्षऽआस यतो द्यावापृथिवी निष्टतक्षुः । मनीषिणो मनसा पृच्छतेदु तद्यदध्यतिष्ठद्भुवनानि धारयन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    किम्। स्वित्। वनम्। कः। ऊँऽइत्यूँ। सः। वृक्षः। आस। यतः। द्यावापृथिवी इति द्यावापृथिवी। निष्टतक्षुः। निस्ततक्षुरिति निःऽततक्षुः। मनीषिणः। मनसा। पृच्छत। इत्। ऊँऽइत्यूँ। तत्। यत्। अध्यतिष्ठदित्यधिऽअतिष्ठत्। भुवनानि। धारयन्॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 20
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    भावार्थ -
    राजा के पक्ष में- ( किं स्वित् वनम् ) जिस प्रकार काठ के नाना पदार्थों को बनाने के लिये लकड़ी आवश्यक होती है और उसको किसी वृक्ष में से काटा जाता है और जंगल से लाया जाता है और दृढ़, उत्तम पदार्थ को बनाने के लिये उत्तम काठ का ही संग्रह किया जाता है। इसी प्रकार गृह, राज्य और समस्त रचनायुक्त कार्यों के लिये पहले मूलद्रव्य की अपेक्षा होती है । उसी के विषय में प्रश्न है कि - ( १ ) ( यतः ) जिसमें से ( द्यावापृथिवी ) द्यौ:=सूर्य और पृथिवी दोनों के समान भोक्ता और भोग्य राजा और प्रजा दोनों को ( निःततक्षुः ) विद्वान् लोग गढ़कर तैयार करते हैं वह ( वनं किं स्वित् ) कौन सा 'वन' है। अर्थात् जैसे किसी वन से काष्ठ लाकर काठ के पदार्थ बनाये जाते हैं ऐसे राजा प्रजाओं को बनाने के लिये किस जगह से मूल द्रव्य लाया जाता है। और ( २ ) ( कः उ सः वृक्ष: आस ) वह वृक्ष कौनसा है ? अर्थात् जिस प्रकार कुर्सी आदि बनाने के लिये किसी वृक्ष को काट कर उसमें से कुर्सी बनाई जाती है उसी प्रकार यह राजा प्रजा युक्त राष्ट्र को किस मूल स्थिर पदार्थ में से गढ़कर निकाला गया है । हे ( मनीषिणः ) मनीषी, मतिमान् विद्वान् पुरुषो ! ( मनसा ) अपने मन से समझ बूझकर तुम भी क्या इसपर कभी ( पृच्छत इत् उ ) प्रश्न या तर्क वितर्क या जिज्ञासा किया करते हो कि ( तत् ) वह महान् बल कौनसा है ( यत् ) जो ( भुवनानि धारयन् ) समस्त उत्पन्न प्राणियों को पालन करता हुआ उनपर ( अधि अतिष्ठत् ) अधिष्ठाता, शासक रूप से विराजता है । वह क्या है ? परमेश्वर पक्ष में - ( किं स्विद् वनं ) वह कौनसा मूलकारण, सबके भजन करने योग्य परम पदार्थ है और ( कः उ सः वृक्षः आस ) वह कौनसा वृक्ष अर्थात् मूल 'स्कम्भ' या तना है ( यतः द्यावापृथिवी ) जिसमें से द्यौ और भूमि, जमीन और आकाश इनको परमेश्वर ने ( निः ततक्षुः ) गढ़ कर निकाला है । हे ( मनीषिणः) ज्ञानशाली, संकल्प विकल्प और ऊहापोह करने में कुशल विवेकी पुरुषो ! आप लोग भी ( तत् ) उस मूलकारण के सम्बन्ध में ( पृच्छत ) प्रश्न , तर्क वितर्क, जिज्ञासा करो ( यत् ) जो ( भुवनानि धारयम् ) समस्त उत्पन्न हुए असंख्य ब्रह्माडों और उत्पन्न लोकों और सूर्यादि पदार्थों को धारण पालन पोषण और स्तम्भन करता हुआ उनपर ( अधि अतिष्ठत् ) अध्यक्ष रूप से शासन कर रहा है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - त्रिष्टुभः । धैवतः ॥

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