Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 81
    ऋषिः - नाभानेदिष्ठ ऋषिः देवता - पुरोहितयजमानौ देवते छन्दः - निचृदार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    6

    सꣳशि॑तं मे॒ ब्रह्म॒ सꣳशि॑तं वी॒र्यं बल॑म्। सꣳशि॑तं क्ष॒त्रं जि॒ष्णु यस्या॒हमस्॑िम पु॒रोहि॑तः॥८१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सꣳशि॑त॒मिति॒ सम्ऽशि॑तम्। मे॒। ब्रह्म॑। सꣳशि॑त॒मिति॒ सम्ऽशि॑तम्। वी॒र्य᳕म्। बल॑म्। सꣳशि॑त॒मिति॒ सम्ऽशि॑तम्। क्ष॒त्रम्। जि॒ष्णु। यस्य॑। अ॒हम्। अस्मि॑। पु॒रोहि॑त॒ इति॑ पु॒रःऽहि॑तः ॥८१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सँशितम्मे ब्रह्म सँशितं वीर्यम्बलम् । सँशितङ्क्षत्रञ्जिष्णु यस्याहमस्मि पुरोहितः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सꣳशितमिति सम्ऽशितम्। मे। ब्रह्म। सꣳशितमिति सम्ऽशितम्। वीर्यम्। बलम्। सꣳशितमिति सम्ऽशितम्। क्षत्रम्। जिष्णु। यस्य। अहम्। अस्िम। पुरोहित इति पुरःऽहितः॥८१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 81
    Acknowledgment

    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - (पुरोहिताचे वचन) (अहम्) मी (यस्य) ज्या यजमानाचा (पुरोहित:) प्रथम धारणकर्ता (सर्वप्रथम असा मार्गदर्शक) अस्मि) आहे, त्याचा वंश आणि (मे) माझा वंश (संशितम्) प्रशंसनीय (कीर्तिमान होवो) तसेच (ब्रह्म) माझे ब्रह्मज्ञान आणि त्या यजमानाचा (संशितम्) प्रशंसनीय (वीर्य्यम्) पराक्रम आणि प्रशंसनीय (बलम्) बळ तसेच त्याचे (संशितम्) प्रशंसनीय आणि (विष्णु) विजयी स्वभाव असणारे कूळ (क्षत्रम्) प्रशंसनीय क्षत्रियकूळ व्हावे (अशी मी कामना करतो वा ईश्वराशी प्रार्थना करतो) ॥81॥

    भावार्थ - भावार्थ - पुरोहित आणि यजमान दोघांनी एकमेकाविषयी अशीच कर्मे करावीत की ज्यायोगे विद्या व योगशक्तीची उन्नती होईल, धर्माचरणाने आत्म्याची उन्नती होईल, ब्रह्मचर्यधारणामुळे जितेंद्रियत्व येईल आणि नीरोगतेमुळे शारीरिक बळ वाढेल ॥81॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top