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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 11
    ऋषिः - लोपामुद्रा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगार्षी बृहती स्वरः - मध्यमः
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    नम॑स्ते॒ हर॑से शो॒चिषे॒ नम॑स्तेऽअस्त्व॒र्चिषे॑। अ॒न्याँस्ते॑ अ॒स्मत्त॑पन्तु हे॒तयः॑ पाव॒कोऽअ॒स्मभ्य॑ꣳ शि॒वो भ॑व॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। ते॒। हर॑से। शो॒चिषे॑। नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। अ॒र्चिषे॑। अ॒न्यान्। ते॒। अ॒स्मत्। त॒प॒न्तु॒। हे॒तयः॑। पा॒व॒कः। अ॒स्मभ्य॑म्। शि॒वः। भ॒व॒ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमस्ते हरसे शोचिषे नमस्तेऽअस्त्वर्चिषे । अन्याँस्तेऽअस्मत्तपन्तु हेतयः पावकोऽअस्मभ्यँ शिवो भव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। ते। हरसे। शोचिषे। नमः। ते। अस्तु। अर्चिषे। अन्यान्। ते। अस्मत्। तपन्तु। हेतयः। पावकः। अस्मभ्यम्। शिवः। भव॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 11
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