Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 16
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    5

    आ॒स॒न्दी रू॒पꣳ रा॑जास॒न्द्यै वेद्यै॑ कु॒म्भी सु॑रा॒धानी॑। अन्त॑रऽउत्तरवे॒द्या रू॒पं का॑रोत॒रो भि॒षक्॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒स॒न्दीत्या॑ऽस॒न्दी। रू॒पम्। रा॒जा॒स॒न्द्या इति॑ राजऽआस॒न्द्यै। वेद्यै॑। कु॒म्भी। सु॒रा॒धानीति॑ सुरा॒ऽधानी॑। अन्त॑रः। उ॒त्त॒र॒वे॒द्या इत्यु॑त्तरऽवे॒द्याः। रू॒पम्। का॒रो॒त॒रः। भि॒षक् ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आसन्दी रूपँ राजासन्द्यै वेद्यै कुम्भी सुराधानी । अन्तरऽउत्तरवेद्या रूपङ्कारोतरो भिषक् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आसन्दीत्याऽसन्दी। रूपम्। राजासन्द्या इति राजऽआसन्द्यै। वेद्यै। कुम्भी। सुराधानीति सुराऽधानी। अन्तरः। उत्तरवेद्या इत्युत्तरऽवेद्याः। रूपम्। कारोतरः। भिषक्॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, तुम्हांस उचित आहे की तुम्ही यज्ञासाठी आवश्यक (आसन्दी) सर्वसोयीने युक्त आसन (पाट, चौरंग आदी) ठेवा व तिला (रूपम्‌) सुंदर रूप द्या. तसेच (राजासन्द्यै) ज्या प्रकारच्या सुंदर आसनावर राजा बसतात, त्याच प्रकारचे सुंदर आसन आणि (वैद्ये) सुखदायी अशी वेदी तयार करा. (कुम्भी) धान्य आदी पदार्थ ठेवण्यासाठी कोठार, तसेच (सुरादानी) ज्यात सोमरस भरून ठेवला जातो, असे मडके, घागर आदी भांडी तयार ठेवा (अन्तरः) ज्यामुळे जीवन राहते प्राण व शरीर टिकून राहतात, ते अन्न आदी पदार्थ सिद्ध करा. (उत्तरवेद्याः) दुसऱ्या वेदीचे (रूपम्‌) रूप अधिक सुंदर करण्यासाठी (कारोतरः) गवंडी आदी कारागीर तयार ठेवा. आणि कुशल (भिषक्‌) वैद्य यांचीही यज्ञाच्या वेळी उपस्थिती आवश्यक असल्यामुळे त्यानाही निमंत्रित करा ॥16॥

    भावार्थ - भावार्थ - माणसाने जे जे (उत्तम सर्व हितकारी) कार्य करण्याचे ठरविले असेल, त्यासाठी आवश्यक समस्त साधनांचा संग्रह अवश्य करावा ॥16॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top