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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 92
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - आत्मा देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    आ॒त्मन्नु॒पस्थे॒ न वृक॑स्य॒ लोम॒ मुखे॒ श्मश्रू॑णि॒ न व्या॑घ्रलो॒म। केशा॒ न शी॒र्षन् यश॑से श्रि॒यै शिखा॑ सि॒ꣳहस्य॒ लोम॒ त्विषि॑रिन्द्रि॒याणि॑॥९२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒त्मन्। उ॒पस्थ॒ऽइत्यु॒पस्थे॑। न। वृक॑स्य। लोम॑। मुखे॑। श्मश्रू॑णि। न। व्या॒घ्र॒लो॒मेति॑ व्याघ्रऽलो॒म। केशाः॑। न। शी॒र्षन्। यश॑से। श्रि॒यै। शिखा॑। सि॒ꣳहस्य॑। लोम॑। त्विषिः॑। इ॒न्द्रि॒याणि॑ ॥९२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आत्मन्नुपस्थे न वृकस्य लोम मुखे श्मश्रूणि न व्याघ्रलोम । केशा न शीर्षन्यशसे श्रियै शिखा सिँहस्य लोम त्विषिरिन्द्रियाणि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आत्मन्। उपस्थऽइत्युपस्थे। न। वृकस्य। लोम। मुखे। श्मश्रूणि। न। व्याघ्रलोमेति व्याघ्रऽलोम। केशाः। न। शीर्षन्। यशसे। श्रियै। शिखा। सिꣳहस्य। लोम। त्विषिः। इन्द्रियाणि॥९२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 92
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - (योग्याचे रूप कसे असावे? केश दाढी-मिशा, रोम आदी नी सुशोभित योगी अधिक प्रभावी वाटतो, असे वर्णन केले आहे) हे मनुष्यानो (हे जाणून घ्या की) ज्याच्या (आत्मन्‌) आत्म्यात (उपस्ये) समीप स्थिती असते (जो परमेश्वराजवळ असतो वा धानस्थ वा आत्मकेंद्रित असतो) तो योगी (वृकस्य) शरीरावर लांडग्याच्या (लोम) (न) केशाप्रमाणे अथवा (व्याघ्रलोम) (न) वाघाच्या केशांप्रमाणे केश धारण करतो (मुखे) त्याच्या मुखावर (श्मश्रूणि) दाढी-मिशा आणि (शीर्षन्‌) डोक्यावर (केशाः) (न) लांब लांब केशांच्या (शिखा) जटा (असते) त्याच्या शरीरावर (सिंहस्थ) सिंहाच्या (लोम) केशांप्रमाणे (त्विषिः) कांती असते. अशा कांतिमान योग्याची (इन्द्रियाणि) कर्ण आदी इंद्रिये शुद्ध असतात म्हणूनच तो (यशसे) कीर्ती आणि (श्रिये) धनसंपदा प्राप्त करण्यात यशस्वी होतो ॥92॥

    भावार्थ - भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. जे लोक परमेश्वराची उपासना करतात, ते जीवनात यशस्वी व कीर्तिमंत होतात. जे योगाभ्यास करतात, ते लांडगा, वाघ व सिंहाप्रमाणे एकांतदेशी राहून पराक्रमी होतात. तसेच ते लोक पूर्ण ब्रह्मचर्याचे पालन करतात, ते क्षत्रिय लोक लांडगा, वाघ आणि सिंहाप्रमाणे पराक्रमी होतात. ॥92॥

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