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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 34
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    यम॒श्विना॒ नमु॑चेरासु॒रादधि॒ सर॑स्व॒त्यसु॑नोदिन्द्रि॒याय॑। इ॒मं तꣳ शु॒क्रं मधु॑मन्त॒मिन्दु॒ꣳ सोम॒ꣳ राजा॑नमि॒ह भ॑क्षयामि॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम्। अ॒श्विना॑। नमु॑चेः। आ॒सु॒रात्। अधि॑। सर॑स्वती। असु॑नोत्। इ॒न्द्रि॒याय॑। इ॒मम्। तम्। शु॒क्रम्। मधु॑मन्तम्। इन्दु॑म्। सोम॑म्। राजा॑नम्। इ॒ह। भ॒क्ष॒या॒मि॒ ॥३४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमश्विना नमुचेरासुरादधि सरस्वत्यसुनोदिन्द्रियाय । इमन्तँ शुक्रम्मधुमन्तमिन्दुँ सोमँ राजानमिह भक्षयामि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यम्। अश्विना। नमुचेः। आसुरात्। अधि। सरस्वती। असुनोत्। इन्द्रियाय। इमम्। तम्। शुक्रम्। मधुमन्तम्। इन्दुम्। सोमम्। राजानम्। इह। भक्षयामि॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 34
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ- हे मनुष्यांनो, (मी एक साधक) (इह) या संसारात (इन्द्रियाच) धनप्राप्ती आणि शक्तीप्राप्तीसाठी (यम्‌) जे काही करतो, ते (नमुचेः) आपल्यातील पाणी ज्याप्रमाणे मेघ सोडत नाही, (धारण करून ठेवतो, बरसत नाही) (त्या मेघा प्रमाणे जी सोम औषधी) (अधि) अधिक (शुक्रम्‌) शीघ्रबलदायी आणि (मधुमन्तम्‌) उत्तम मधुर, स्वादु आदी गुणांनीयुक्त, तसेच (इन्दुम्‌) श्रेष्ठ ऐश्वर्य देणारे (राजानम्‌) तेच स्विता देणारे जे (सोमम्‌) पुरूषार्थदायी औषध सोमरस आहे, ते औषध (सरस्वती) त्या विदुषी स्त्रीने (असुनोत्‌) तयार केले आहे तथाच ते औषध (सोम) (अश्विना) राज्याचे सभापती व सेनापतीही तयार करतात (वा सेवनासाठी तयार ठेवतात) (तम्‌, इमम्‌) त्या औषधरसाला मी (एक सामान्यजन वा दाश्रक देखील) (भक्षयामि) सेवन करतो आणि इतरांनाही खाण्यास देतो ॥34॥

    भावार्थ - भावार्थ - जे लोक उवम पौष्टिक रसयुक्त भोजन करतात, इंद्रियें बलशाली होतात आणि ते सदा आनंद उपभोगतात. ॥34॥

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