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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 41
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती शक्वरी सूक्तम् - भूमि सूक्त
    112

    यस्यां॒ गाय॑न्ति॒ नृत्य॑न्ति॒ भूम्यां॒ मर्त्या॒ व्यैलबाः। यु॒ध्यन्ते॒ यस्या॑माक्र॒न्दो यस्यां॒ वद॑ति दुन्दु॒भिः। सा नो॒ भूमिः॒ प्र णु॑दतां स॒पत्ना॑नसप॒त्नं मा॑ पृथि॒वी कृ॑णोतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्या॑म् । गाय॑न्ति । नृत्य॑न्ति । भूम्या॑म् । मर्त्या॑: । विऽऐ॑लबा: । यु॒ध्यन्ते॑ । यस्या॑म् । आ॒ऽक्र॒न्द: । यस्या॑म् । वद॑ति । दु॒न्दु॒भि: । सा । न॒: । भूमि॑: । प्र । नु॒द॒ता॒म् । स॒ऽपत्ना॑न् । अ॒स॒प॒त्न॒म् । मा॒ । पृ॒थि॒वी । कृ॒णो॒तु॒ ॥१.४१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्यां गायन्ति नृत्यन्ति भूम्यां मर्त्या व्यैलबाः। युध्यन्ते यस्यामाक्रन्दो यस्यां वदति दुन्दुभिः। सा नो भूमिः प्र णुदतां सपत्नानसपत्नं मा पृथिवी कृणोतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्याम् । गायन्ति । नृत्यन्ति । भूम्याम् । मर्त्या: । विऽऐलबा: । युध्यन्ते । यस्याम् । आऽक्रन्द: । यस्याम् । वदति । दुन्दुभि: । सा । न: । भूमि: । प्र । नुदताम् । सऽपत्नान् । असपत्नम् । मा । पृथिवी । कृणोतु ॥१.४१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 41
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राज्य की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (यस्यां भूम्याम्) जिस भूमि पर (व्यैलबाः) विविध प्रकार वाणियों के बोलनेवाले (मर्त्याः) मनुष्य (गायन्ति) गाते हैं और (नृत्यन्ति) नाचते हैं। (यस्यां भूम्याम्) जिस भूमि पर (आक्रन्दः) कोलाहल करनेवाले [योद्धा] (युध्यन्ते) लड़ते हैं, (यस्याम्) जिस पर (दुन्दुभिः) ढोल (वदति) बजता है। (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हमारे (सपत्नान्) वैरियों को (प्र णुदताम्) हटा देवे, (पृथिवी) पृथिवी (मा) मुझ को (असपत्नम्) बिना शत्रु (कृणोतु) करे ॥४१॥

    भावार्थ

    जिस पृथिवी पर मनुष्य ऊँचे, नीचे और मध्यम स्वर से गाते, नाचते और बाजे बजाकर युद्ध करते हैं, वहाँ पर धर्मात्मा लोग निर्विघ्न होकर सुख प्राप्त करें ॥४१॥

    टिप्पणी

    ४१−(यस्याम्) (गायन्ति) गानं कुर्वन्ति (नृत्यन्ति) नृत्यं कुर्वन्ति (भूम्याम्) (मर्त्याः) मनुष्याः (व्यैलबाः) इला=वाक्। वि+इला−अण् समूहार्थे+वण शब्दे−ड। विविधमिलानां वाचां शब्दयितारः (युध्यन्ते) संप्रहरन्ति (यस्याम्) (आक्रन्दः) क्रदि आह्वाने रोदने च−क्विप्। कोलाहलशीलाः (यस्याम्) (वदति) ध्वनति (दुन्दुभिः) बृहड्ढक्का (सा) (नः) अस्माकम् (भूमिः) (प्रणुदताम्) प्रेरयतु (सपत्नान्) शत्रून् (असपत्नम्) अशत्रुम् (मा) माम् (पृथिवी) (कृणोतु) करोतु ॥

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    विषय

    गायन, नर्तन व युद्ध

    पदार्थ

    १. (यस्यां भूम्याम्) = जिस भूमि पर (मत्याः) = मनुष्य (गायन्ति नृत्यन्ति) = गायन व नर्तन करते हैं और (व्यैलबा:) = [ऐलव noise, हैं] विशिष्ट शब्दोंवाले युद्ध के आह्वान के घोषवाले मनुष्य (यस्यां युध्यन्ते) = जिसपर शत्रुओं के साथ युद्ध करते हैं। (यस्याम्) = जिस भूमि पर (आक्रन्दः) = शत्रुओं को ललकारना होता है और (दुन्दुभिः वदति) = युद्ध का नगारा बजता है (सा भूमिः) = वह पृथिवी (नः सपत्नान्) = हमारे शत्रुओं को (प्रणुदताम्) = परे धकेलने वाली हो। २. यह (पृथिवी) = भूमिमाता (मा) = मुझे (असपत्नम्) = शत्रुरहित (कृणोतु) = करे। इस पृथिवी पर कहीं गायन व नर्तन हो रहा होता है, तो कहीं युद्ध । युद्ध के समय गायन व नर्तन सम्भव नहीं रहता। हम असपल बनकर, युद्धों की स्थिति से ऊपर उठकर ही हर्ष का जीवन बिता सकते हैं।

    भावार्थ

    इस पृथिवी पर एक ओर युद्ध हैं, दूसरी ओर हर्षपूर्वक गायन व नर्तन हैं। प्रभु हमें असपत्न बनाएँ, जिससे हम युद्धों से ऊपर उठकर जीवन का आनन्द ले-सकें।

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    भाषार्थ

    (यस्या भूम्याम्) जिस भूमि में (व्यैलवाः) विविध प्रकार की क्रीड़ाओं को करने वाले (मर्त्याः) मनुष्य (गायन्ति, नृत्यन्ति) गाते और नाचते हैं, (यस्याम्) जिस में (युध्यन्ते, आक्रन्दः) युद्ध करते और युद्ध में परस्पर ललकारते हैं, (यस्याम्) जिस में (दुन्दुभिः वदति) युद्ध के समय तथा खुशी के समय नगाड़े बजते हैं, (सा भूमिः) वह भूमि (नः सपत्नान्) हमारे शत्रुओं को (प्रणुदताम्) परे धकेले, और (मा) मुझे (पृथिवी) पृथिवी (असपत्नम्) शत्रुरहित करे।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में मनुष्यों के स्वाभाविक जीवनों को चित्रित किया है। सम्राट् अपने लिये पृथिवी को शत्रुरहित चाहता है। व्यैलवाः = वि + एला (विलासे) + वाः (वाले), यथा एला केला खेला विलासे (कण्ड्वादिगण)। विलासः = Sport, Play, pastime (आप्टे)। आक्रन्दः = क्रदि आह्वाने; यथा "मल्लो मल्लमाह्वयते]

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    विषय

    पृथिवी सूक्त।

    भावार्थ

    (यस्यां) जिस (भूम्यां) भूमि पर (मर्त्याः) मरण-धर्मा मनुष्य (व्यैलबाः) नाना प्रकार के शब्द करते हुए (गायन्ति) गाते (नृत्यन्ति) नाचते और (युद्धवन्ते) युद्ध करते हैं और (यस्यां) जिस पर (आक्रन्दः) अति शब्दकारी (दुन्दुभिः वदति) नगाड़ा बजता है। (सा भूमिः) वह भूमि (नः सपत्नान्) हमारे शत्रुओं को (प्र नुदताम्) परे करे और (मा पृथिवी) मुझ को पृथिवी (असपत्नं) शत्रु रहित (कृणोतु) करे।

    टिप्पणी

    (द्वि०) जनामर्त्या व्द्यैलवाः (तृ०) ‘युद्धयन्तेस्यां’ (प०, ष०) सानो भूमिः प्रदधता सपत्नान्। यो नो द्वेष्ट्यधरंतं कृणोतु इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। भूमिर्देवता। १ त्रिष्टुप्, २ भुरिक्, ४-६, १० त्र्यवसाना षट्पदा जगत्यः, ७ प्रस्तार पंक्तिः, ८, ११ व्यवसाने षट्पदे विराडष्टी, ९, परानुष्टुप्, १२ त्र्यवसने शक्वर्यौ। ६, १५ पञ्चपदा शक्वरी, १४ महाबृहती, १६, २१ एकावसाने साम्नीत्रिष्टुभौ, १८ त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुबनुष्टुब्गर्मातिशक्वरी, १९ पुरोबृहती, २२ त्र्यवसाना षट्पदा विराड् अतिजगती, २३ पञ्चपदा विराड् जगती, २४ पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा जगती, २५ सप्तपदा उष्णिग् अनुष्टुब्गर्भा शक्वरी, २६-२८ अनुष्टुभः, ३० विराड् गायत्री ३२ पुरस्ताज्ज्योतिः, ३३, ३५, ३९, ४०, ५०, ५३, ५४,५६, ५९, ६३, अनुष्टुभः, ३४ त्र्यवसासना षट्पदा त्रिष्टुप् बृहतीगर्भातिजगती, ३६ विपरीतपादलक्ष्मा पंक्तिः, ३७ पंचपदा व्यवसाना शक्वरी ३८ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ४१ सप्तपदा ककुम्मती शक्वरी, ४२ स्वराडनुष्टुप्, ४३ विराड् आस्तार पंक्तिः ४४, ४५, ४९ जगत्यः, षट्पदाऽनुष्टुबगर्भा परा शक्वरी ४७ षट्पदा विराड् अनुष्टुब् गर्भापरातिशक्वरी ४८ पुरोऽनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्, ५१ व्यवसाना षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा ककुम्मती शक्वरी, ५२ पञ्चपदाऽनुष्टुब्गर्भापरातिजगती, ५३ पुरोबृहती अनुष्टुप् ५७, ५८ पुरस्ताद्बृहत्यौ, ६१ पुरोवार्हता, ६२ पराविराट, १, ३, १३, १७, २०, २९, ३१, ४६, ५५, ६०, त्रिष्टुभः। त्रिषष्टयृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (यस्यां भूम्यां व्यैलबाः-मर्त्याः-गायन्ति नृत्यन्ति) जिस भूमि पर विविध विलास-विनोद करने वाले [वि पूर्वकात् ऐला विलासे कराड्वादि० ततः 'वप्' औणादिकः प्रत्ययो बाहुलकात्] मनुष्य गाते हैं नाचते हैं (यस्यां युध्यन्ते) जिस पर युद्ध करते हैं (यस्याम्-आक्रन्दः-दुन्दुभिः-वदति) जिस पर लम्बा शब्द करने वाला भेरी बोलता है-बजता है (सा भूमिः-नः-सपत्नान् प्रदताम्) वह भूमि हमारे शत्रुओं को ठेस पहुंचावें (पृथिवी मा असपत्नं कृणोतु) पृथिवी मुझे शत्रुरहित कर दें ॥४१॥

    विशेष

    ऋषिः- अथर्वा (स्थिर ज्ञान वाला ) देवता - भूमिः ( पृथिवी )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Mother Earth

    Meaning

    The Motherland on whose bosom mortal people of various classes and cultures sing and dance in joy, whereon war drums boom and warriors clash with shouts and chllenges against the adversaries, may that Motherland throw away violent adversaries, and render me free from enemies and war.

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    Translation

    On whom, the earth, mortals sing (and) dance with loud noises; on whom they fight; on whom speaks the shout, the drum — let that earth push forth our rivals; let earth make me free from rivals.

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    Translation

    May that mother earth go whom men having different views to express sing and dance, on whom they meet in battle and the war-cry and the war-drum resound, remove our foes (through us) and may the spacious earth rid us of them.

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    Translation

    May she, our motherland, whereon men sing and dance, whereon warriors battle with varied shout and noise, and the war-cry and the drum resound, may she drive off our foemen, may Earth rid me of any foe.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४१−(यस्याम्) (गायन्ति) गानं कुर्वन्ति (नृत्यन्ति) नृत्यं कुर्वन्ति (भूम्याम्) (मर्त्याः) मनुष्याः (व्यैलबाः) इला=वाक्। वि+इला−अण् समूहार्थे+वण शब्दे−ड। विविधमिलानां वाचां शब्दयितारः (युध्यन्ते) संप्रहरन्ति (यस्याम्) (आक्रन्दः) क्रदि आह्वाने रोदने च−क्विप्। कोलाहलशीलाः (यस्याम्) (वदति) ध्वनति (दुन्दुभिः) बृहड्ढक्का (सा) (नः) अस्माकम् (भूमिः) (प्रणुदताम्) प्रेरयतु (सपत्नान्) शत्रून् (असपत्नम्) अशत्रुम् (मा) माम् (पृथिवी) (कृणोतु) करोतु ॥

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