अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 56
ये ग्रामा॒ यदर॑ण्यं॒ याः स॒भा अधि॒ भूम्या॑म्। ये सं॑ग्रा॒माः समि॑तय॒स्तेषु॒ चारु॑ वदेम ते ॥
स्वर सहित पद पाठये । ग्रामा॑: । यत् । अर॑ण्यम् । या: । स॒भा: । अधि॑ । भूम्या॑म् । ये । स॒म्ऽग्रा॒मा: । सम्ऽइ॑तय: । तेषु॑ । चारु॑ । व॒दे॒म॒ । ते॒ ॥१.५६॥
स्वर रहित मन्त्र
ये ग्रामा यदरण्यं याः सभा अधि भूम्याम्। ये संग्रामाः समितयस्तेषु चारु वदेम ते ॥
स्वर रहित पद पाठये । ग्रामा: । यत् । अरण्यम् । या: । सभा: । अधि । भूम्याम् । ये । सम्ऽग्रामा: । सम्ऽइतय: । तेषु । चारु । वदेम । ते ॥१.५६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राज्य की रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(ये ग्रामाः) जो गाँव, (यत् अरण्यम्) जो वन, (याः सभाः) जो सभाएँ (भूम्याम् अधि) भूमि पर हैं। (ये संग्रामाः) जो संग्राम और (समितयः) समितिएँ [सम्मेलन] हैं, (तेषु) उन सब में (ते) तेरा (चारु) सुन्दर यश (वदेम) हम कहें ॥५६॥
भावार्थ
मनुष्यों को उचित है कि सब स्थानों, सब अवस्थाओं और राजसभा, न्यायसभा, धर्मसभा आदि में पृथिवी के गुणों की महिमा जानकर और बखानकर देशभक्ति करें ॥५६॥
टिप्पणी
५६−(ये) (ग्रामाः) वासस्थानानि (यत्) (अरण्यम्) वनम् (याः) (सभाः) समाजाः (अधि) उपरि (भूम्याम्) (ये) (संग्रामाः) रणक्षेत्राणि (समितयः) सम्मेलनानि (तेषु) (चारु) सुन्दरं यशः (वदेम) कथयेम (ते) तव ॥
विषय
'ग्राम, अरण्य, सभा, संग्राम व समिति' में भूमिमाता का यशोगान
पदार्थ
१. (ये ग्रामा:) = जो ग्राम, (यत् अरण्यम्) = जो जंगल, (याः सभा:) = जो सभाएँ (अधिभूम्याम्) = इस भूमि पर हैं-ये (संग्रामा:) = जो संग्राम व जो (समितयः) = शान्ति-सभाएँ [Peace conferences] इस पृथिवी पर होती है, (तेषु) = उनमें (ते चारु वदेम) = तेरे लिए सुन्दर ही वचन कहें। २. जब भी हम एकत्र हों, जहाँ भी एकत्र हों, वहाँ प्रभु से उत्पादित इस पृथिवी के महत्व का चर्चण करें। यह चर्चण हमें इस भूमिमाता का स्मरण कराएगा-हमें अनुभव होगा कि हम इस माता के ही तो पुत्र हैं-अतः परस्पर भाई हैं। ऐसा सोचने पर हम द्वेष से दूर व परस्पर प्रेमवाले होंगे।
भावार्थ
हम 'ग्राम, अरण्य, सभा, संग्राम व समितियों में सर्वत्र भूमिमाता का यशोगान करते हुए परस्पर बन्धुत्व का अनुभव करें।
भाषार्थ
(भूम्याम् अधि) पृथिवी पर (ये ग्रामाः) जो ग्राम, (यद् अरण्यम्) जो अरण्य, (ये संग्रामाः) जो ग्राम संगठन, (समितयः) तथा राजसभाएं हैं, (तेषु) उन में हे पृथिवी ! (ते) तेरे सम्बन्ध में (चारु वदेम) प्रशंसा वचन हम बोलें।
टिप्पणी
[ग्रामाः, संग्रामाः = अलग-अलग ग्राम; तथा परस्पर संगठित ग्राम। सभाः, समितयः= लोकसभाएं, तथा राजसभाएं। “समितयः" के सम्बन्ध में कहा है कि “यत्रौषधीः समम्मत राजानः समिताविव। विप्रः स उच्यते भिषग् रक्षोहामीबचातन” (यजु० १२।८०), अर्थात् "जिस मनुष्य में ओषधियों का संगम होता है, जैसे कि राजाओं का समिति में, वह मेधावी "भिषक" कहा जाता है, जो कि रोग कीटाणुओं और रोगों का हनन और विनाश करता है। इस वर्णन से प्रतीत होता है कि समितयः का अर्थ "राजसभाएं" है। जिस पृथिवी का शासन उत्तम हो, जिस से कि प्रत्येक पृथिवी निवासी समृद्ध तथा सामर्थ्य सम्पन्न हो, उस शासन की प्रशंसा तो सर्वत्र होती ही है (मन्त्र ५५,५६)]
विषय
पृथिवी सूक्त।
भावार्थ
हे पृथिवि ! (ये ग्रामाः) जो ग्राम हैं, (यद् अरण्यम्) जो जंगल हैं (अधि भूम्याम् या सभाः) और भूमि पर जो सभाएं और (ये संग्रामाः समितयः) जो संग्राम, युद्धस्थान और समितियें हैं (तेषु) उनमें हम (ते चारु वदेम) तेरा उत्तम यशोगान करें।
टिप्पणी
‘ये ग्राम्या यान्यारण्यानि’, (तृ च०) ‘तेष्वहं देवि पृथिविमयुसंत्यत्र’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। भूमिर्देवता। १ त्रिष्टुप्, २ भुरिक्, ४-६, १० त्र्यवसाना षट्पदा जगत्यः, ७ प्रस्तार पंक्तिः, ८, ११ व्यवसाने षट्पदे विराडष्टी, ९, परानुष्टुप्, १२ त्र्यवसने शक्वर्यौ। ६, १५ पञ्चपदा शक्वरी, १४ महाबृहती, १६, २१ एकावसाने साम्नीत्रिष्टुभौ, १८ त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुबनुष्टुब्गर्मातिशक्वरी, १९ पुरोबृहती, २२ त्र्यवसाना षट्पदा विराड् अतिजगती, २३ पञ्चपदा विराड् जगती, २४ पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा जगती, २५ सप्तपदा उष्णिग् अनुष्टुब्गर्भा शक्वरी, २६-२८ अनुष्टुभः, ३० विराड् गायत्री ३२ पुरस्ताज्ज्योतिः, ३३, ३५, ३९, ४०, ५०, ५३, ५४,५६, ५९, ६३, अनुष्टुभः, ३४ त्र्यवसासना षट्पदा त्रिष्टुप् बृहतीगर्भातिजगती, ३६ विपरीतपादलक्ष्मा पंक्तिः, ३७ पंचपदा व्यवसाना शक्वरी ३८ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ४१ सप्तपदा ककुम्मती शक्वरी, ४२ स्वराडनुष्टुप्, ४३ विराड् आस्तार पंक्तिः ४४, ४५, ४९ जगत्यः, षट्पदाऽनुष्टुबगर्भा परा शक्वरी ४७ षट्पदा विराड् अनुष्टुब् गर्भापरातिशक्वरी ४८ पुरोऽनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्, ५१ व्यवसाना षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा ककुम्मती शक्वरी, ५२ पञ्चपदाऽनुष्टुब्गर्भापरातिजगती, ५३ पुरोबृहती अनुष्टुप् ५७, ५८ पुरस्ताद्बृहत्यौ, ६१ पुरोवार्हता, ६२ पराविराट, १, ३, १३, १७, २०, २९, ३१, ४६, ५५, ६०, त्रिष्टुभः। त्रिषष्टयृचं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(भूम्याम् अधि ये ग्रामाः-यत्-अरण्यं याः सभाः) भूमि पर जो ग्राम हैं जो जङ्गल हैं जो सभाएं हैं-गणस्थान हैं (ये संग्रामाः समितयः) जो संग्राम युद्धस्थल हैं और जो शिविर हैं (तेषु ते चारु वेदम) उन सबमें हैं पृथिवो तेरे लिये चारु- प्रशंसावचन हम बोलें-बोलते हैं ॥५६॥
विशेष
ऋषिः- अथर्वा (स्थिर ज्ञान वाला ) देवता - भूमिः ( पृथिवी )
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Mother Earth
Meaning
O Mother, whatever villages and cities there are, or forests, or parliaments and assemblies there are on earth, whatever battles or problems, whatever committees, congregations and conferences there be, we shall speak and perform well everywhere and do you proud.
Translation
What villages, what forest, what assemblies, (are) upon the - earth, what hosts, gatherings -- in them may we speak what is pleasant to thee.
Translation
We should recount the glories of the mother earth in villages, in wood land, in all assemblages, in wars and meetings of the people on the earth.
Translation
In hamlets and in woodland, and in all Assemblys on earth, on battlefields and in conferences, we will sing thy glory, O motherland!
Footnote
Assemblys: Rajya Sabha: Parliament; Vidya Sabha: Educational Conferences; Nyaya Sabha: Courts of Justice.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५६−(ये) (ग्रामाः) वासस्थानानि (यत्) (अरण्यम्) वनम् (याः) (सभाः) समाजाः (अधि) उपरि (भूम्याम्) (ये) (संग्रामाः) रणक्षेत्राणि (समितयः) सम्मेलनानि (तेषु) (चारु) सुन्दरं यशः (वदेम) कथयेम (ते) तव ॥
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