Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 53
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - पुरोबार्हतानुष्टुप् सूक्तम् - भूमि सूक्त
    60

    द्यौश्च॑ म इ॒दं पृ॑थि॒वी चा॒न्तरि॑क्षं च मे॒ व्यचः॑। अ॒ग्निः सूर्य॒ आपो॑ मे॒धां विश्वे॑ दे॒वाश्च॒ सं द॑दुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यौ: । च॒ । मे॒ । इ॒दम् । पृ॒थि॒वी । च॒ । अ॒न्तरि॑क्षम् । च॒ । मे॒ । व्यच॑: । अ॒ग्नि: । सूर्य॑: । आप॑: । मे॒धाम् । विश्वे॑ । दे॒वा: । च॒ । सम् । द॒दु॒: ॥१.५३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्यौश्च म इदं पृथिवी चान्तरिक्षं च मे व्यचः। अग्निः सूर्य आपो मेधां विश्वे देवाश्च सं ददुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्यौ: । च । मे । इदम् । पृथिवी । च । अन्तरिक्षम् । च । मे । व्यच: । अग्नि: । सूर्य: । आप: । मेधाम् । विश्वे । देवा: । च । सम् । ददु: ॥१.५३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 53
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राज्य की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (मे) मुझ को (द्यौः) प्रकाश (च) और (पृथिवी) पृथिवी (च च) और (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष ने (इदम्) यह (व्यचः) विस्तार [दिया है], (मे) मुझ को (अग्निः) अग्नि, (सूर्यः) सूर्य, (आपः) जल (च) और (विश्वे) सब (देवाः) उत्तम पदार्थों ने (मेधाम्) धारणावती बुद्धि (सम्) ठीक-ठीक (ददुः) दी है ॥५३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य संसार के पदार्थों में विज्ञानपूर्वक फैलते चले जाते हैं, वे ही विज्ञानी बुद्धि बढ़ाकर संसार को सुख देते हैं ॥५३॥

    टिप्पणी

    ५३−(द्यौः) प्रकाशः (च) (मे) मह्यम् (इदम्) प्रत्यक्षम् (पृथिवी) (च) (अन्तरिक्षम्) (च) (मे) मह्यम् (व्यचः) विस्तारम् (अग्निः) (सूर्यः) (आपः) जलानि (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिम् (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यपदार्थाः (च) (सम्) सम्यक् (ददुः) दत्तवन्तः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    व्यचः-मेधा

    पदार्थ

    १. (द्यौः च) = द्युलोक, (पृथिवी च) = पृथिवीलोक, (अन्तरिक्षं च) = और अन्तरिक्षलोक (मे) = मेरे लिए (इदं व्यच:) = इस विशालता-विशाल हृदयता [Expanse, Vastness] को दें। द्युलोकस्थ सूर्य सभी के लिए प्रकाश देता है, पृथिवी से उत्पन्न फूल-फल सभी भद्र-पापियों का पोषण करते हैं, अन्तरिक्ष में बहनेवाला वायु सभी को जीवन देता है। मेरे हृदय में भी सभी के लिए स्थान हो। २. (अग्निः) = पृथिवी का मुख्यदेव 'अग्नि', (सूर्यः) = द्युलोक का मुख्य देव 'सूर्य', (आप:) = अन्तरिक्ष में मेघस्थ जल, (विश्वेदेवा: च) = और सब देव मिलकर मुझे (मेधा संददुः) = बुद्धि देनेवाले हों। सभी देवों की अनुकूलता में मैं स्वस्थ मस्तिष्क बनें। सब देवों की अनुकूलता होने पर ही स्वास्थ्य प्राप्त होता और बुद्धि भी स्वस्थ बनी रहती है।

    भावार्थ

    त्रिलोकी के विस्तार का चिन्तन मुझे भी विशाल बनाये। सूर्य आदि सब देव मुझे स्वस्थ बनाते हुए स्वस्थ मस्तिष्कवाला करें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (द्यौः च, पृथिवी च) द्युलोक और पृथिवी ने (मे) मुझे (इदम् व्यचः) यह विस्तार, (अन्तरिक्षम्, च) तथा अन्तरिक्ष ने (मे) मुझे यह विस्तार (सं ददुः) दिया है। (अग्निः, सूर्यः, आपः, विश्वेदेवाः च) अग्नि, सूर्य, जल तथा सब देवों ने (मेधाम्) मुझे मेधा (संददुः) दी है।

    टिप्पणी

    [मन्त्र ५१ में अतिगर्मी का वर्णन है, अतः बुद्धि निज कार्य में शिथिल पड़ जाती है। मन्त्र ५२ के अनुसार वर्षा ऋतु में गर्मी कम हो जाने से बुद्धि भद्रावस्था में हो जाती है, परन्तु स्थान-स्थान पर कीचड़ और जल की सत्ता के कारण मार्ग रुक जाते हैं, अतः कार्यक्षेत्र संकुचित हो जाता है। परन्तु मन्त्र ५३ के अनुसार शरद् ऋतु के आगमन के कारण कार्यक्षेत्र विस्तृत हो जाता; द्यौ-पृथिवी-अन्तरिक्ष, बादलों के अभाव से स्वच्छ हो जाते, सूखा इन्धन प्राप्त हो जाने के कारण गृह्याग्नि प्रचण्ड होने लगती, सूर्य भी चमकने लगता, जल स्वच्छ हो जाता- इस प्रकार सब देव मिल कर कार्यक्षेत्र के लिये बुद्धि को अधिक विकसित कर देते हैं।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पृथिवी सूक्त।

    भावार्थ

    (द्यौः च) यह द्यौः, आकाश, (पृथिवी च) पृथिवी और (अन्तरिक्षम् च) अन्तरिक्ष (इदं व्यचः) ये तीनों विशाल विस्तृत प्रदेश (मे) मेरे ही फलने फूलने और समृद्ध होने के लिये हैं। (अग्निः) अग्नि, (सूर्य) सूर्य, (आपः) जल और (विश्वे देवाः) जगत् की समस्त दिव्य-शक्तियाँ मुझे उक्त तीनों विशाल प्रदेशों को वश करने के लिये (मेधाम्) बुद्धि (सं ददुः) प्रदान करें।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘मेदं’ (च०) ‘संदधुः’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। भूमिर्देवता। १ त्रिष्टुप्, २ भुरिक्, ४-६, १० त्र्यवसाना षट्पदा जगत्यः, ७ प्रस्तार पंक्तिः, ८, ११ व्यवसाने षट्पदे विराडष्टी, ९, परानुष्टुप्, १२ त्र्यवसने शक्वर्यौ। ६, १५ पञ्चपदा शक्वरी, १४ महाबृहती, १६, २१ एकावसाने साम्नीत्रिष्टुभौ, १८ त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुबनुष्टुब्गर्मातिशक्वरी, १९ पुरोबृहती, २२ त्र्यवसाना षट्पदा विराड् अतिजगती, २३ पञ्चपदा विराड् जगती, २४ पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा जगती, २५ सप्तपदा उष्णिग् अनुष्टुब्गर्भा शक्वरी, २६-२८ अनुष्टुभः, ३० विराड् गायत्री ३२ पुरस्ताज्ज्योतिः, ३३, ३५, ३९, ४०, ५०, ५३, ५४,५६, ५९, ६३, अनुष्टुभः, ३४ त्र्यवसासना षट्पदा त्रिष्टुप् बृहतीगर्भातिजगती, ३६ विपरीतपादलक्ष्मा पंक्तिः, ३७ पंचपदा व्यवसाना शक्वरी ३८ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ४१ सप्तपदा ककुम्मती शक्वरी, ४२ स्वराडनुष्टुप्, ४३ विराड् आस्तार पंक्तिः ४४, ४५, ४९ जगत्यः, षट्पदाऽनुष्टुबगर्भा परा शक्वरी ४७ षट्पदा विराड् अनुष्टुब् गर्भापरातिशक्वरी ४८ पुरोऽनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्, ५१ व्यवसाना षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा ककुम्मती शक्वरी, ५२ पञ्चपदाऽनुष्टुब्गर्भापरातिजगती, ५३ पुरोबृहती अनुष्टुप् ५७, ५८ पुरस्ताद्बृहत्यौ, ६१ पुरोवार्हता, ६२ पराविराट, १, ३, १३, १७, २०, २९, ३१, ४६, ५५, ६०, त्रिष्टुभः। त्रिषष्टयृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्रार्थ

    (द्यौः-च मे पृथिवी च अन्तरिक्षं च मे-इदं व्यचः सं ददुः) द्युलोक मेरे लिए और पृथिवी तथा अन्तरिक्ष मेरे लिये मेरे जीवन के इस अवकाश को सम्यक् देते हैं (अग्निः सूर्य: आपः-विश्वे देवाः च मेधां संददुः) अग्नि, सूर्य, जल, विश्वेदेव, मरुत् आदि सब देव मेरे लिये मेधा को सम्यक् देते हैं इस पृथिवी पर यथावत् रहने से ॥५३॥

    विशेष

    ऋषिः- अथर्वा (स्थिर ज्ञान वाला ) देवता - भूमिः ( पृथिवी )

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Mother Earth

    Meaning

    May the heaven, this vast earth, this expansive firmament, heat and light, sun, waters, and all divinities of nature and humanity of the world bless me with holy intelligence and good will.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Both heaven and earth and atmosphere (have given) me this expanse; fire, sun, waters, and all the gods have together given me wisdom.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the heavens the earth and the firmament afford me ample room, and Fire, Sun, Water and all the other objects endowed with good qualities join together to become the source of giving me decisive understanding.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Heaven, Earth, the realm of Middle Air, all these extended regions are meant for my advancement. May Fire, Sun, Waters, all the divine forces of nature grant me mental power to control them.

    Footnote

    Them: Heaven, Earth, Mid-Air realm.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५३−(द्यौः) प्रकाशः (च) (मे) मह्यम् (इदम्) प्रत्यक्षम् (पृथिवी) (च) (अन्तरिक्षम्) (च) (मे) मह्यम् (व्यचः) विस्तारम् (अग्निः) (सूर्यः) (आपः) जलानि (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिम् (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यपदार्थाः (च) (सम्) सम्यक् (ददुः) दत्तवन्तः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top