Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 26
    सूक्त - यमः देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त

    आ य॑न्ति दि॒वः पृ॑थि॒वीं स॑चन्ते॒ भूम्याः॑ सचन्ते॒ अध्य॒न्तरि॑क्षम्। शु॒द्धाः स॒तीस्ता उ॑ शुम्भन्त ए॒व ता नः॑ स्व॒र्गम॒भि लो॒कं न॑यन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । य॒न्ति॒ । दि॒व: । पृ॒थि॒वीम् । स॒च॒न्ते॒ । भूम्या॑: । स॒च॒न्ते॒ । अधि॑ । अ॒न्तरि॑क्षम् । शु॒ध्दा: । स॒ती: । ता: । ऊं॒ इति॑ । शुम्भ॑न्ते । ए॒व । ता: । न॒: । स्व॒:ऽगम् । अ॒भि । लो॒कम् । न॒य॒न्तु॒ ॥३..२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ यन्ति दिवः पृथिवीं सचन्ते भूम्याः सचन्ते अध्यन्तरिक्षम्। शुद्धाः सतीस्ता उ शुम्भन्त एव ता नः स्वर्गमभि लोकं नयन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । यन्ति । दिव: । पृथिवीम् । सचन्ते । भूम्या: । सचन्ते । अधि । अन्तरिक्षम् । शुध्दा: । सती: । ता: । ऊं इति । शुम्भन्ते । एव । ता: । न: । स्व:ऽगम् । अभि । लोकम् । नयन्तु ॥३..२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 26

    पदार्थ -

    १. गतमन्त्र में वर्णित संन्यस्त पुरुष (दिवः) = ज्ञान के प्रकाश से (आयन्ति) = समन्तात् गतिवाले होते हैं-ज्ञान के प्रकाश को फैलाने के लिए परिव्रजन करते हैं। प(ृथिवीं सचन्ते) = इस शरीररूप पृथिवी के साथ मेलवाले होते हैं-शरीर को स्वस्थ रखते हैं। लोकहित के लिए भी शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक ही है। (भूम्याः) = [भू शुदौ] शोधन के दृष्टिकोण से (अन्तरिक्षम् अधिसचन्ते) = हृदयान्तिरक्ष का सेवन करते हैं, अर्थात् हृदयस्थ प्रभु का ध्यान करते हैं। यह प्रभु का ध्यान इनके जीवन को शुद्ध बनाए रखता है। २. (शुद्धा सती: ता:) = स्वयं शुद्ध जीवनवाली होती हुई वे प्रभु की प्रजाएँ [वे प्रभु के संदेशहर] (उ) = निश्चय से (शुम्भन्ते एव) = अन्य लोगों के जीवनों को शुद्ध बनाती हैं। (ता:) = वे प्रभु के व्यक्ति अपने ज्ञानोपदेश द्वारा (न:) = हमें (स्वर्ग लोकम् अभि) = स्वर्गलोक की ओर (नयन्तु) = ले-चलें। इनकी ज्ञानवाणियों हमें इसप्रकार उत्तम कर्मों में प्रेरित करें कि हम अपने घरों को स्वर्ग बना सकें।

    भावार्थ -

    संन्यस्त लोग [क] ज्ञान के साथ विचरते हैं, [ख] शरीर को स्वस्थ रखते हैं, [ग] हृदयस्थ प्रभु का ध्यान करते हुए जीवन को शुद्ध बनाते हैं, [घ] शुद्ध जीवनवाले होते हुए औरों को भी शुद्ध करते हैं, [ङ] ज्ञानोपदेश द्वारा उन्हें उस मार्ग पर ले-चलते हैं, जिससे वे अपने घरों को स्वर्ग-तुल्य बना पाते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top