अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 51
सूक्त - यमः
देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
ए॒षा त्व॒चां पुरु॑षे॒ सं ब॑भू॒वान॑ग्नाः॒ सर्वे॑ प॒शवो॒ ये अ॒न्ये। क्ष॒त्रेणा॒त्मानं॒ परि॑ धापयाथोऽमो॒तं वासो॒ मुख॑मोद॒नस्य॑ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षा । त्व॒चाम् । पुरु॑षे । सम् । ब॒भू॒व॒ । अन॑ग्ना: । सर्वे॑ । प॒शव॑: । ये । अ॒न्ये । क्ष॒त्रेण॑ । आ॒त्मान॑म् । परि॑ । ध॒प॒या॒थ॒: । अ॒मा॒ऽउ॒तम् । वास॑: । मुख॑म्। ओ॒द॒नस्य॑ ॥३.५१॥
स्वर रहित मन्त्र
एषा त्वचां पुरुषे सं बभूवानग्नाः सर्वे पशवो ये अन्ये। क्षत्रेणात्मानं परि धापयाथोऽमोतं वासो मुखमोदनस्य ॥
स्वर रहित पद पाठएषा । त्वचाम् । पुरुषे । सम् । बभूव । अनग्ना: । सर्वे । पशव: । ये । अन्ये । क्षत्रेण । आत्मानम् । परि । धपयाथ: । अमाऽउतम् । वास: । मुखम्। ओदनस्य ॥३.५१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 51
विषय - क्षत्र+अमोतं वासः
पदार्थ -
१. (त्वचाम् एषा) = त्वचाओं में यह त्वचा-किन्हीं भी बालों से अनावृत त्वचा (पुरुषे संबभूव) = पुरुष में है, अर्थात् पुरुष की यह त्वचा है जो कि नग्न-सी है। (ये अन्ये सर्वे पशव:) = जो और सारे पशु है, वे जो (अनग्नाः) = नग्न नहीं है-उन्हें शीतोष्ण के निवारण के लिए वस्त्रान्तर की आवश्यकता नहीं। २. हे पति-पत्नी! आप दोनों (क्षत्रेण) = बल से-वीर्यशक्ति से (आत्मानम्) = अपने को (परिधापयाथ:) = परिधापित करो-यह क्षत्र ही आपका वस्त्र बने। इस क्षत्र के साथ (अमा ऊतं वास:) = घर में बुना हुआ वस्त्र (ओदनस्य) = इन अन्नमयकोश का (मुखम्) = प्रधान परिधान [वस्त्र] होता है।
भावार्थ -
प्रभु ने मनुष्य की त्वचा को अन्य प्राणीयों की तरह बालों से आवत नहीं किया, अतः मनुष्य को वस्त्रों की आवश्यकता होती है। मुख्य वस्त्र तो 'बल' ही है। जितनी शक्ति कम होगी उतनी वस्त्रे की आवश्यकता अधिक होगी। उसके लिए प्रयत्न करना चाहिए कि घर पर कते-बने वस्त्र ही पहने जाएँ।
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